गुरुवार, 22 जून 2017
साक्षात्कार : गोविन्द माथुर
Govind Mathur: http://www.youtube.com/playlist?list=PL5WRkh_KnLaVRJJVrXxXRUhhqWyKs7UXp
शनिवार, 6 मई 2017
छाया
कविता
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छाया
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धूप में झुलसता रहा
जीवन भर
छाया कभी मिली नहीं
भीगा कुछ देर
बरसात में भी
धूप खिली रही
छाया तो दूर ही रही
मुझ से यहाँ तक कि
अपनी छाया भी
कभी दिखी नहीं
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( "परिकथा" मई - जून ' 2017 में प्रकाशित )
आकाश
कविता
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आकाश
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हर व्यक्ति के सिर पर
एक आकाश होता है
चाहे बहुत दूर होता है
आकाश है ये महसूस करने पर
सहारा बना रहता है
होते तो और भी कई सहारे हैं
किन्तु वे कभी भी
छोड़ कर जा सकते हैं
जैसे पहाड़ टूट कर गिर सकते हैं
बिजली कड़क कर गिर सकती है
बादल गरज कर बरस सकते हैं
आकाश सिर्फ मुहावरे में गिरता है
आकाश के सिर पर रहने से
भरोसा नहीं टूटता।
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( "परिकथा" मई - जून ' 2017 में प्रकाशित )
नीला
कविता
------
नीला
------
मुझे नीला रंग
पहले भी अच्छा लगता था
आज भी मुझे नीला रंग
आकर्षित करता है
इसलिए नहीं कि
आकाश का रंग नीला होता है
इसलिए भी नहीं कि
झील का पानी नीला दीखता है
इसलिए तो बिलकुल नहीं कि
मुझे नीली आँखों से प्रेम है
मुझे नीला रंग इसलिए पसंद है
मैं पहले भी उदास रहता था
आज भी उदास रहता हूँ
और इसलिए भी कि
रक्त का रंग नीला नहीं होता
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( " परिकथा " मई - जून' 2017 में प्रकाशित )
बुधवार, 19 अप्रैल 2017
खिलौना खरीदने से पहले
कविता
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खिलौना खरीदने से पहले
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बार बार मेरे हाथ जाते हैं
कभी भालू की पीठ पर
कभी बन्दर को नाक पर
लौट आते हैं तेजी से
जैसे किसी ने गड़ा दिए हों नुकीले दांत
मैं कुछ झेंप कर पूछने लगता हूँ
एरोप्लेन या हैलीकॉप्टर के दाम
मेरे सामने खिलौनों की अदभुत दुनिया
सोती जागती गुड़िया है
मेरे ख्यालों में एक बच्चा है - जिसने
फरमाइश की थी एक गन की
अपने दोनों हाथ जेब में डाल कर
दुकानदार की और देख , खिलौनों के दाम सुन मुझे भी भी जरुरत महसूस होती है एक गन की
खिलौना खरीदने से पहले
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( काव्य - संग्रह " दीवारों के पार कितनी धूप "
वर्ष ' 1991 से एक कविता )
मंगलवार, 21 मार्च 2017
कवि और समाज
कविता
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कवि और समाज
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कुछ भी नहीं बदलता
एक कवि के चले जाने से
कवि जो करता था
समाज को बदलने की बात
बदल नहीं पाया था स्वयं को भी
कवि जानता था उसकी कविता
बदल नहीं सकती समाज को न दुनिया को
कवि के चले जाने से खाली हो जाती है
एककुर्सी,सूनी हो जाती हैएक मेज।उदासजाती हैं कुछ किताबें
कवि के चले से जाने से भर आते हैं
जिनकी आँखों में आंसू
बिछुड़ जाने का जिनको होता है दुःख
वे कवि आत्मीयजन होते हैं
जिनके लिए वह कवि नहीं होता
कवि का चले जाना समाचार नहीं बनता
चुपचाप चला जाता है कवि जैसे कोई गया ही न हो
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बुधवार, 8 मार्च 2017
जली हुई देह
कविता
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जली हुई देह
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वह स्त्री पवित्र अग्नि की लौ से
गुज़र कर आई उस घर में
उसकी देह से फूटती रोशनी
समा गई घर की दीवारों में
दरवाजों और खिड़कियों में
उसने घर की हर वस्तु कपडे, बिस्तर,बर्तन
यहाँ तक की झाड़ू को भी दी अपनी उज्ज्वलता
दाल,अचार, रोटियों को दी अपनी महक
उसकी नींद,प्यास,भूख और थकन
विलुप्त हो गई एक पुरुष की देह में
पवित्र अग्नि की लौ से गुज़र कर आईं
स्त्री को एक दिन लौट दिया अग्नि को
जिस स्त्री ने पहचान दी घर को
उस स्त्री की कोई पहचान नहीं थी
जली हुई देह थी एक स्त्री की
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जली हुई देह
----------------
वह स्त्री पवित्र अग्नि की लौ से
गुज़र कर आई उस घर में
उसकी देह से फूटती रोशनी
समा गई घर की दीवारों में
दरवाजों और खिड़कियों में
उसने घर की हर वस्तु कपडे, बिस्तर,बर्तन
यहाँ तक की झाड़ू को भी दी अपनी उज्ज्वलता
दाल,अचार, रोटियों को दी अपनी महक
उसकी नींद,प्यास,भूख और थकन
विलुप्त हो गई एक पुरुष की देह में
पवित्र अग्नि की लौ से गुज़र कर आईं
स्त्री को एक दिन लौट दिया अग्नि को
जिस स्त्री ने पहचान दी घर को
उस स्त्री की कोई पहचान नहीं थी
जली हुई देह थी एक स्त्री की
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शनिवार, 18 फ़रवरी 2017
तस्वीरों से झांकते पुराने मित्र
कविता
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तस्वीरों से झांकते पुराने मित्र
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श्वेत श्याम तस्वीरों में अभी
मौजूद है पुराने मित्र
मौजूद है पुराने मित्र
गले में बाहें डाले या कंधे पर कुहनी टिकाये
तस्वीर देख कर नहीं लगता बरसों से नहीं मिले होंगें
ये मासूम से दिखने वाले पतले - दुबले छोकरे
तस्वीरों बाहर मिलना नहीं होता पुराने मित्रों से
कुछ एक को तो देखे हुए भी
पंद्रह बीस साल गुज़र गए
पंद्रह बीस साल गुज़र गए
एक ही शहर में रहते हुए भी
अचकचा गया एक दिन अजमेरी गेट पर
अंडे खरीद ते हुए
अंडे खरीद ते हुए
एक मोटे आदमी को देख कर
प्रमोद हंस रहा था मुझे पहचान कर
महानगर होते नगर में ऐसा कभी ही होता है कि
कोई आप को पहचान रहा हो
ये सोच कर उदास हो जाता है मन
जिन मित्रों के साथ जमती थी महफ़िल
मिलते थे हर रोज़
मिलते थे हर रोज़
घंटों खड़े रहा करते थे चौराहे पर वे बचपन के मित्र
जीवन से निकल कर तस्वीरों में रह गए हैं
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गुरुवार, 5 जनवरी 2017
काम से लौटती स्रियाँ
कविता
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काम से लौटती स्त्रियां
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जिस तरह हवाओं में लौटती है खुशबू
पेड़ों पर लौटती हैं चिड़ियाँ
शाम को घरों को लौटती है काम पर गई स्त्रियां
उदास बच्चों के लिए टाफियां
उदासीन पतियों के लिए सिगरेट के पैकिट खरीदती
शाम को घरों को लौटती है काम पर गई स्त्रियां
काम पर गई स्त्रियों के साथ
घरों में लौटता है घरेलूपन
चूल्हों में लौटती है आग
दीयों में लौटती हैं रोशनी
बच्चों में लौटती है हंसी
पुरुषों में लौटता है पौरुष
आकाश अपनी जगह दिखाई देता है
पृथ्वी घूमती है धूरी पर
शाम को घरों को लौटती हैं काम पर गई स्त्रियां
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बुधवार, 14 दिसंबर 2016
कम - कम
कविता
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कम - कम
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कम कम में भी
कट जाता है जीवन
खुशियां मिली कम
प्रेम मिला कम
लोगों के दिल में
जगह मिली कम
चाय में मिली चीनी कम
दाल में मिला नमक कम
शराब में मिला पानी काम
दोस्तों ने निभाई दोस्ती कम
दुश्मनों ने निभाई दुश्मनी कम
कुछ और अच्छा कट जाता जीवन
दुःख भी मिले होते कम
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कम - कम
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कम कम में भी
कट जाता है जीवन
खुशियां मिली कम
प्रेम मिला कम
लोगों के दिल में
जगह मिली कम
चाय में मिली चीनी कम
दाल में मिला नमक कम
शराब में मिला पानी काम
दोस्तों ने निभाई दोस्ती कम
दुश्मनों ने निभाई दुश्मनी कम
कुछ और अच्छा कट जाता जीवन
दुःख भी मिले होते कम
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सोमवार, 28 नवंबर 2016
रास्ते
कविता
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रास्ते
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उन्ही रास्तों पर चला मैं
जो थे लंबे और ऊबड़ - खाबड़
शार्ट - कट नहीं ढूंढें मैंने
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रास्ते
---------
उन्ही रास्तों पर चला मैं
जो थे लंबे और ऊबड़ - खाबड़
शार्ट - कट नहीं ढूंढें मैंने
अभी मंज़िल दूर थी
चल ही रहा था मैं
कुछ लोग लौटते हुए मिले
सही राह की तलाश में
बहुत कम थे
अधिकांश शार्ट - कट से
पहुँच गए थे गन्तव्य तक
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शनिवार, 22 अक्टूबर 2016
यहां एक नगर था
कविता
यहाँ एक नगर था
यहाँ एक नगर था
कुछ आदमी रहा करते थे
कुछ औरतें गुनगुनाया करती थी
कुछ बच्चे खिलखिलाया करते थे
इधर इस मोड़ पर एक चौक था
घरों के बाहर चबूतरे थे
जहाँ घंटों बैठक जमा करती थी
ताश और चौसर चला करती थी
एक पेड़ था जिसकी छाँव में
धूप सुस्ताया करती थी
दीवारों पर चित्र हुआ करते थे
हाथी घोडा पालकी जय कन्हैया लाल की
एक खामोश गीत सुनाई पड़ता था
जिसे ख़ामोशी खुद सुनाया करती थी
उधर उस मोड़ पर हाट था
ये पूरा नगर का नगर कैसे बाजार हो गया
ये इतने दूकानदार किस देश - विदेश से आये हैं
यहाँ एक नगर था उस नगर का क्या हुआ
बुधवार, 12 अक्टूबर 2016
नींद में स्त्री
कविता
नींद में स्री
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है स्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही है व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है दाल चावल
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
झूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिलकुल अकेली
नींद में जागती रहती है स्त्री
कई हजार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
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नींद में स्री
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है स्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही है व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है दाल चावल
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
झूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिलकुल अकेली
नींद में जागती रहती है स्त्री
कई हजार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
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शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2016
सत्य का चेहरा
कविता
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सत्य का चेहरा
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सत्य का एक चेहरा होता है
रंगहीन भी नहीं होता सत्य
लेकिन झूठ की तरह हर कहीं
नहीं पाया जाता
न ही झूठ में घुल पता है सत्य
अगर होता है कहीं .
अलग से दिव्य आलोक लिए
दमकता रहता है सत्य
कुछ लोग निरन्तर
सत्य की खोज में
भटक रहे हैं आज भी
जबकि कुछ लोग दावा कर रहे हैं
उन्होंने खोज लिया है सत्य
जिसे वे सत्य कह रहे हैं
हजार बार बोला गया झूठ है
रगड़ रगड़ कर पैदा की गई चमक है
वे आनंदित प्रमुदित हैं अपनी खोज पर
उन्होंने पा लिया है सत्य का रहस्य
हे ईश्वर
उन्हें बता कि सत्य क्या है.
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सत्य का चेहरा
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सत्य का एक चेहरा होता है
रंगहीन भी नहीं होता सत्य
लेकिन झूठ की तरह हर कहीं
नहीं पाया जाता
न ही झूठ में घुल पता है सत्य
अगर होता है कहीं .
अलग से दिव्य आलोक लिए
दमकता रहता है सत्य
कुछ लोग निरन्तर
सत्य की खोज में
भटक रहे हैं आज भी
जबकि कुछ लोग दावा कर रहे हैं
उन्होंने खोज लिया है सत्य
जिसे वे सत्य कह रहे हैं
हजार बार बोला गया झूठ है
रगड़ रगड़ कर पैदा की गई चमक है
वे आनंदित प्रमुदित हैं अपनी खोज पर
उन्होंने पा लिया है सत्य का रहस्य
हे ईश्वर
उन्हें बता कि सत्य क्या है.
मंगलवार, 20 सितंबर 2016
पितृ पक्ष
पितृ पक्ष
-----------
उनको नहीं देखा मैंने
उनकी कोई स्मृति भी नहीं
बहुत पहले ही चले गए थे
मेरे जन्म के कुछ ही बाद
मेरे बचपन से भी पहले
फिर भी एक अहसास
न होने का,एक अमूर्त
आकृति मंडराती रही मेरे आस पास
दोनों हाथों की अंजुरी बना कर
पृथ्वी पर जल छोड़ता हूँ
आह्वान करता हूँ
श्राद्ध पक्ष में अपने पुरखों का
और उनका भी जो मेरे पिता थे
जिनकी जगह खाली रही जीवन में
जिनकी अंगुली
पकड़ कर नहीं चला मैं
-------
( मेरे चतुर्थ काव्य -संग्रह "बची हुई हंसी " से )
-----------
उनको नहीं देखा मैंने
उनकी कोई स्मृति भी नहीं
बहुत पहले ही चले गए थे
मेरे जन्म के कुछ ही बाद
मेरे बचपन से भी पहले
फिर भी एक अहसास
न होने का,एक अमूर्त
आकृति मंडराती रही मेरे आस पास
दोनों हाथों की अंजुरी बना कर
पृथ्वी पर जल छोड़ता हूँ
आह्वान करता हूँ
श्राद्ध पक्ष में अपने पुरखों का
और उनका भी जो मेरे पिता थे
जिनकी जगह खाली रही जीवन में
जिनकी अंगुली
पकड़ कर नहीं चला मैं
-------
( मेरे चतुर्थ काव्य -संग्रह "बची हुई हंसी " से )
गुरुवार, 15 सितंबर 2016
एक ही नगर में
कविता
-----------
एक ही नगर में
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एक ही नगर में रहते हैं पांच कवि
खूब प्रकाशित होते हैं
साहित्यिक पत्रिकाओं में
दूसरे नगर से देखने पर
समृद्ध लगता है ये नगर
एक ही नगर में रहते हुए
एक कवि को दूसरे कवि की खबर नहीं हैं
पहला कवि नहीं जानता दूसरे कवि ने
बदल लिया है मकान
दूसरा कवि नहीं जानता तीसरा कवि
भर्ती है अस्पताल में
चौथा कवि किसी अन्य को
कवि नहीं मानता
पांचवां कवि अब भी कभी कभी
जाता है कॉफी हाउस
पांचों कवि मिलते हैं अपने ही नगर में
किसी साहित्यिक समारोह में
जिसमें मुख्य अतिथि होते हैं
राजधानी से आये नामवर आलोचक
अपने ही नगर में पांचों कवि
इस तरह मिलते है गले
मिले हों वर्षों बाद
जैसे आये हों दूसरे नगरों से
---------------
-----------
एक ही नगर में
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एक ही नगर में रहते हैं पांच कवि
खूब प्रकाशित होते हैं
साहित्यिक पत्रिकाओं में
दूसरे नगर से देखने पर
समृद्ध लगता है ये नगर
एक ही नगर में रहते हुए
एक कवि को दूसरे कवि की खबर नहीं हैं
पहला कवि नहीं जानता दूसरे कवि ने
बदल लिया है मकान
दूसरा कवि नहीं जानता तीसरा कवि
भर्ती है अस्पताल में
चौथा कवि किसी अन्य को
कवि नहीं मानता
पांचवां कवि अब भी कभी कभी
जाता है कॉफी हाउस
पांचों कवि मिलते हैं अपने ही नगर में
किसी साहित्यिक समारोह में
जिसमें मुख्य अतिथि होते हैं
राजधानी से आये नामवर आलोचक
अपने ही नगर में पांचों कवि
इस तरह मिलते है गले
मिले हों वर्षों बाद
जैसे आये हों दूसरे नगरों से
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सोमवार, 12 सितंबर 2016
शून्य में
कविता
-----------
शून्य में
-----------
कई बार शून्य में
चला जाता हूँ मैं
एक बेहद लंबी
सैकड़ों मील दूर तक फैली सुरंग
जिसमें न हवा है न ही जल
कहीं कोई प्रकाश छिद्र भी नहीं
निस्तब्ध निर्वाक अपने क़दमों की
पदचाप भी सुनाई नहीं देती
जहाँ न शब्द है
न ही शब्दों के अर्थ
न ही शब्दों के बीच छूटी खाली जगह
एक निराकार
ध्यानस्थ भारहीन
रूई के फाहे सा
तैरता रहता हूँ शून्य में
किसी गहन अँधेरे में
फिर लौटना नहीं चाहता
कोलाहल में
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( काव्य -- संग्रह " बची हुई हंसी " से एक कविता )
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शून्य में
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कई बार शून्य में
चला जाता हूँ मैं
एक बेहद लंबी
सैकड़ों मील दूर तक फैली सुरंग
जिसमें न हवा है न ही जल
कहीं कोई प्रकाश छिद्र भी नहीं
निस्तब्ध निर्वाक अपने क़दमों की
पदचाप भी सुनाई नहीं देती
जहाँ न शब्द है
न ही शब्दों के अर्थ
न ही शब्दों के बीच छूटी खाली जगह
एक निराकार
ध्यानस्थ भारहीन
रूई के फाहे सा
तैरता रहता हूँ शून्य में
किसी गहन अँधेरे में
फिर लौटना नहीं चाहता
कोलाहल में
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( काव्य -- संग्रह " बची हुई हंसी " से एक कविता )
सोमवार, 5 सितंबर 2016
उदास दिनों में
कविता
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उदास दिनों में
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अपने सबसे उदास दिनों में भी
इतना उदास नहीं था मैं
तब उदास होने के लिए
कुछ भी जरूरी नहीं था
पेड़ों से झर रहे हो पत्ते तो
उदास हो जाया करता था
मेघों से टपक रही हों बूंदें
तो उदास हो जाया करता था
मेरे सबसे उदास दिनों में
इतने बुरे नहीं थे लोग
अपने सबसे बुरे दिनों में
सबसे अच्छे मित्रों के साथ रहा मैं
पृथ्वी के सबसे उदास दिनों में भी
सबसे अच्छे मित्रों के साथ
रहना चाहता हूँ मैं
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( काव्य - संग्रह " उदाहरण के लिए आदमी " से )
सोमवार, 22 अगस्त 2016
बातें
कविता : बातें
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कभी हमारे पास
इतनी बातें थीं कि -
ख़त्म ही नहीं होती
प्रहरों बातें करते हुए
चौराहे पर खड़े रहते
अपने अपने घर पहुँचने के
बाद याद आता कि -
वो बात तो कही ही नहीं
जो बात करने घर से निकले थे
अब मिलते हैं तो करने के लिए
कोई बात नहीं होती
करने के लिए वो बात करते हैं
जो बात ही नहीं होती
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कभी हमारे पास
इतनी बातें थीं कि -
ख़त्म ही नहीं होती
प्रहरों बातें करते हुए
चौराहे पर खड़े रहते
अपने अपने घर पहुँचने के
बाद याद आता कि -
वो बात तो कही ही नहीं
जो बात करने घर से निकले थे
अब मिलते हैं तो करने के लिए
कोई बात नहीं होती
करने के लिए वो बात करते हैं
जो बात ही नहीं होती
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शनिवार, 6 अगस्त 2016
उम्मीद
कविता
----------
उम्मीद
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पहले मुझे उसकी कभी
प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी
क्योकि वह वहां
पहले से मौजूद रहता था
जहाँ मुझे
उसकी अपेक्षा होती
मुझे अब भी उसकी
प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती
क्योकि वह वहां नहीं आएगा
जहाँ मुझे उसकी अपेक्षा तो है
पर उम्मीद नहीं है
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