शुक्रवार, 11 जून 2010

कविता
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मैं अभिमन्यु नहीं हूँ
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मैं अभिमन्यु नहीं हूँ 
फिर भी  चक्रव्यूह  में फंस गया हूँ 
जब मैं गर्भ में था 
इस व्यूह की रचना होरही थी 

मैं  महाभारत का पात्र  नहीं हूँ 
स्वतंत्र  भारत का  नागरिक हूँ 
मेरा बाप अर्जुन नहीं था 
एक परतंत्र  नागरिक था 

मैंने आपनी आँखे 
एक सुखद स्वप्न  में खोली थी 
मेरे चेहरे पर घाव 
हथियारों के नहीं 
उन नारों के है 
जो हर मौसम  में फेकें गए है


यह शरीर, ढांचा 
रोटी खाने से नहीं हुआ है 
यह सब तो 
स्वादिष्ट  आश्वासनों के कारण है

मैं  विद्रोह  नहीं करूँगा 
मैं एक शिक्षित  नागरिक हूँ 
मैंने अंग्रेजी  में हिंदी पढ़ी है 
मेरा देश भारत  दैट इज  इंडिया है 

मैं भूख से नहीं नहीं मर सकता 
भारत एक  कृषि प्रधान देश है 
मैं बेरोजगार भी नहीं हूँ 
भारत एक क्लर्क प्रधान देश है 


मुझे समानता  का अधिकार  है 
समानता  अवसर प्रदान करती है 
भारत एक अवसर प्रदान देश है 


जिस व्यूह में मैं फंसा हूँ 
उसे तोडना मुझे नहीं आता 
मेरी मृत्यु  अभिमन्यु जैसी ही होगी


किन्तु इतिहास  में मेरा नाम  नहीं होगा
क्योकि  मैं  अभिमन्यु नहीं हूँ