सोमवार, 31 मई 2010

kavita

कविता 
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युवा कवि 
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युवा कवि होने के लिए 
लबादे  की तरह विद्रोह  ओढ़े  रहना  चाहिए 
सुविधा भोगते हुए भी 
असंतुष्ट और नाराज़ दिखते रहना चाहिए 
हर समय होंठो पर टिकाये रखनी चाहिए किंग साइज़  सिगरेट 


सहमत नहीं होना चाहिए किसी भी मुद्दे पर 
शुरू कर देनी चाहिए बहस 
हर शाम शराब पीते हुए 
अपने से वरिष्ठ  कवियों को गाली देते रहना चाहिए 


युवा कवियों को अक्सर 
देर से पहुंचना चाहिए गोष्ठियों में    
पीछे की कुर्सियों पर बैठ कर
फब्तियां  कसते रहना चाहिए 
अपनी बारी आने पर 
अनिच्छा  दर्शाते हुए 
पढ़ डालनी चाहिए आठ दस कवितायेँ 


कविता लिखने से कुछ नहीं होता 
कविता लिखने से पुरस्कार भी नहीं मिलता 
युवा कवियों को कविता से इत्तर  भी कुछ करते रहना चाहिए 
मसलन  बताते रहना चाहिए
अपनी नई  प्रेमिकाओं के नाम 


नशे में खींच लेना चाहिए 
आलोचक के कमीज़  का कालर 
चर्चा में कविता नहीं कवियों को रहना चाहिए 


बहुत कठिन समय है ये 
साहित्य  के केंद्र  में कविता नहीं 
कविता के केंद्र कवि है इन दिनों 
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गुरुवार, 20 मई 2010

कविता
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मेरा  हाथ 
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  उठता है  मेरा हाथ 
अभिवादन के लिए 
अभिषेक के लिए 
शुभ कामना के लिए 

उठता है मेरा हाथ 
दुआ मांगने के लिए 
अन्याय  के विरूद्ध 
आवाज  उठाने  के लिए 
शोषण के विरूद्ध 
हक  मांगने के लिए 

लेकिन नहीं उठता मेरा हाथ 
पीठ में छुरा घोंपने  के लिए 
धर्मध्वजा  लहराने  के लिए 
रथ में जूते घोड़ों को 
चाबुक मारने के लिए 
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सोमवार, 10 मई 2010

कविता
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मेरी माँ का स्वप्न
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हर माँ  का एक स्वप्न  होता है 
मेरी  माँ का भी एक स्वप्न  था 

हर बेटा अपनी माँ की
आँख का तारा होता है 
कैसा भी हो
भविष्य  का सहारा होता है 

मैं भी होनहार बीरबान था 
मेरे भी चिकने  पात थे 

मेरी माँ का स्वप्न  था 
मैं  ओहदेदार  बनूँगा 
समाज में  प्रतिष्ठित 
इज्जतदार  बनूँगा 
एक बंगले  और कार का 
हकदार बनूँगा 

माँ का ये स्वप्न 
न जाने कब मेरा स्वप्न  बन गया 

मैं  बचपन से  ही 
एक अलग दुनिया में खो गया 
मुझे  न क्यों 
भाग्यशाली  होने का भ्रम  हो गया 

और जब माँ की साधना से 
ओहदा  पाने लायक हो गया 
ओहदा  ही न जाने  कहाँ    खो गया   

कुछ दिन  जूते घिस कर 
भ्रम से निकल कर 
किसी ओहदेदार का  अहलकार  हो गया 

मेरा माँ का  विश्वाश  टूट गया 
उसका  ईश्वर  रूठ गया 


एक दिन माँ ने 
आँखे बंद  करली 
माँ का स्वप्न भी 
बंद आँखों  में मर गया 


मैं खुश था 
माँ के मरने  से नहीं 
स्वप्न के मर जाने से 


फिर मुझे लेकर 
किसी ने स्वप्न नहीं देखा 
कौन देखता 
मैंने  भी नहीं देखा 

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