शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

कविता 
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जरूरी  कुछ भी नहीं है
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जरूरी कुछ भी नहीं है 
न तुम्हारा होना न मेरा होना 

उन सब दस्तावेजों को 
छुपा  देने से क्या होगा 
जिसे तुम षड़यंत्र  की शुरुआत समझते हो 
दोस्त  वो वास्तव में अंत है 
मेरा और तुम्हारा अंत 


फिर तुम स्वयं  समझदार हो
जानते हो जरूरी कुछ भी नहीं है 
पर करना  सब कुछ पड़ता है 


एक अभ्यस्त  सी जिन्दगी जीते रहना 
और रोटी के साथ 
कविता को पचाते रहना 


तुम ही बताओ 
क्या ये सब पूर्व नियोजित
षड़यंत्र  नहीं है , तुम्हारा और
मेरा होना चाहे अनायास रहा होगा
पर दोस्त ,तुम्हारा और मेरा 
जीना अनायास नहीं है


तुम  क्यों किसी षड़यंत्र में
भागीदार बनते  हो
संघर्ष क्यों नहीं करते 
जो हो रहा है उसके विरूद्ध 


जबकि जरूरी कुछ भी नहीं है
न तुम्हारा होना न मेरा होना
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[ प्रथम काव्य -संग्रह   ' शेष होते हुए '[ १९८५ से]
 

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

कविता 
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पड़ाव 
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फिर लौट कर 
उस ही गुलमोहर के
नीचे आ जाना 
यात्रा का अंत नहीं 
अंतहीन  यात्रा का एक  पड़ाव है 

जब मैं थक  जाता हूँ 
दौड़ते हुए लोगो के पीछे 
चीजों  के पीछे 
मैं फिर लौट कर 
गुलमोहर  के नीचे आ जाता हूँ 
जहाँ  से मैंने यात्रा शुरू की थी

ये सोच कर की पहले 
मेरी दिशा  सही नहीं थी 
फिर सुस्ता कर 
नई दिशा में चल देता हूँ 


जिस दिन मेरी यात्रा 
समाप्त हो जाएगी 
उस दिन ये गुलमोहर 
वहां  आ जायेगा 
जहाँ मेरी यात्रा का 
अंतिम पड़ाव होगा
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