सोमवार, 22 अगस्त 2016

बातें

कविता :  बातें 
-----------------
कभी  हमारे  पास 
इतनी  बातें    थीं  कि -
ख़त्म   ही  नहीं  होती  
प्रहरों   बातें  करते  हुए  
चौराहे  पर   खड़े  रहते 
अपने  अपने  घर  पहुँचने के 
बाद    याद    आता  कि  -
वो  बात  तो  कही ही  नहीं 
जो  बात  करने  घर  से  निकले  थे 
अब  मिलते  हैं  तो  करने  के  लिए 
कोई  बात  नहीं  होती  
करने  के  लिए  वो  बात  करते  हैं 
जो  बात  ही  नहीं  होती 
           -----------


शनिवार, 6 अगस्त 2016

उम्मीद

कविता 
----------
उम्मीद
----------
पहले  मुझे  उसकी  कभी 
प्रतीक्षा  नहीं  करनी  पड़ी 
क्योकि  वह   वहां 
पहले  से मौजूद  रहता  था 
जहाँ   मुझे  
उसकी   अपेक्षा   होती 

मुझे  अब भी उसकी 
प्रतीक्षा  नहीं  करनी  पड़ती 
क्योकि  वह  वहां  नहीं  आएगा 
जहाँ   मुझे  उसकी  अपेक्षा  तो  है 
पर  उम्मीद  नहीं   है 
        ---------

गुरुवार, 4 अगस्त 2016

अपने शहर में

कविता 
------
अपने शहर में 
-----------
सदी के मध्य में 
पृथ्वी पर  आया 
पचास वर्ष लग गए 
परिवेश को समझने में 

भूगोल अभी समझ 
नहीं आया 
नदियां समुद्र पहाड़ 
रेगिस्तान भी देखा 
खो गया घने जंगलों में 

चकित हुआ सूर्य और 
चन्द्रमा देख कर 
वर्षों निहारता रहा आकाश 

पहचान नहीं पाया 
अपने ही शहर के रास्ते 

रोज़ पूछता हूँ घर का रास्ता 
पूछ कर भटक जाता हूँ 
अपने ही शहर में 
      ------