मंगलवार, 21 मार्च 2017

कवि और समाज

कविता 
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कवि और समाज 
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कुछ भी नहीं बदलता 
एक कवि के चले जाने से 
कवि जो करता था 
समाज को बदलने की बात 
बदल नहीं पाया था स्वयं को भी 
कवि जानता था उसकी कविता 
बदल नहीं सकती समाज को न दुनिया को 

कवि के चले जाने से खाली हो जाती है 
 एककुर्सी,सूनी हो जाती हैएक मेज।उदासजाती हैं कुछ किताबें
कवि के चले से जाने से भर आते हैं 
जिनकी आँखों में आंसू 
बिछुड़ जाने का जिनको होता है दुःख 
 वे कवि  आत्मीयजन होते हैं 
जिनके लिए वह कवि नहीं होता 

कवि का चले जाना समाचार नहीं बनता 
चुपचाप चला जाता है कवि जैसे कोई गया ही न हो 
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