कवितायेँ
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अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
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हम किसी को
कुछ भी कह सकते है
ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है
कोई हमें कुछ भी कह दे
ये मानहानि है हमारी
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सहिष्णुता
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कोई हमारी प्रशंसा करे
चाहे झूठा ही गुणगान करे
इतना तो सहन कर सकते है हम
कोई आलोचना करे
और हम चुप बैठ जाएँ
इतने भी सहिष्णु नहीं है हम
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स्वाभिमानी
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जहाँ से हमें
कुछ प्राप्त नहीं हो रहा
उनकी क्यों सुने
आखिर स्वाभिमानी है हम
जहाँ से हमें
कुछ प्राप्त हो रहा है
उनकी गाली भी सुन लेते है
ये विनम्रता है हमारी
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अपने को जानना
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अपने अन्दर झांको
अपने को पहचानो
पहले वे अपने को
दूसरों की दृष्टि से देखते थे
अपने अन्दर झांकना
शुरू किया
अपने को पहचानना
शुरू किया
जब से स्वयं को जाना है
अपने को पहचाना है
बेहद दुखी है वे
कितने प्रतिभाशाली है
आज तक किसी ने नहीं पहचाना
सच स्वयं को
स्वयं ही जानना पड़ता है
इस स्वार्थी संसार में
कौन,किसी को पहचानता है
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आकाश में कुहरा घना है
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बेईमान को मत कहो
बेईमान
भ्रष्टाचारी को मत कहो
भ्रष्ट
व्यभिचारी को मत कहो
अनैतिक
सब की प्रशंसा करो या
चुप रहो
अपने मुंह से
क्यों किसी को
बुरा कहो
यदि आपको
प्राप्त करा है सम्मान
सब का सम्मान करो
बचाए रखनी है
अपनी प्रतिष्ठा
सब का गुणगान करो
किसी की कमी बताना
व्यक्तिगत आलोचना है
दुष्यंत कुमार के शब्दों में
मत कहो
आकाश में कुहरा घना है
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[ 'शुक्रवार' २०-२६ मई २०११ में प्रकाशित]