शनिवार, 6 मई 2017

छाया

कविता 
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छाया 
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धूप  में  झुलसता  रहा 
जीवन भर 
छाया  कभी  मिली नहीं 

भीगा  कुछ देर 
बरसात  में भी 
धूप  खिली  रही 

छाया  तो  दूर  ही  रही 
मुझ  से  यहाँ तक कि 
अपनी  छाया  भी 
कभी  दिखी  नहीं 
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( "परिकथा"  मई - जून ' 2017  में  प्रकाशित  )

आकाश

कविता
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आकाश 
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हर व्यक्ति के सिर पर 
एक आकाश होता है 
चाहे बहुत दूर होता है 

आकाश है ये महसूस करने पर 
सहारा बना रहता है 

होते तो और भी कई सहारे हैं 
किन्तु वे कभी भी 
छोड़ कर जा सकते हैं 

जैसे पहाड़ टूट कर गिर सकते हैं 
बिजली कड़क कर गिर सकती है 
बादल गरज कर बरस सकते हैं 

आकाश सिर्फ मुहावरे में गिरता है 

आकाश के सिर पर रहने से 
भरोसा नहीं टूटता। 

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( "परिकथा" मई - जून ' 2017  में   प्रकाशित )


नीला


कविता 
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नीला
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मुझे नीला रंग 
पहले भी अच्छा लगता था 
आज भी मुझे नीला रंग 
आकर्षित करता है 

इसलिए नहीं कि 
आकाश का रंग नीला होता है 

इसलिए भी नहीं कि 
झील का पानी नीला दीखता है 

इसलिए तो बिलकुल नहीं कि 
मुझे नीली आँखों से प्रेम है 

मुझे नीला रंग इसलिए पसंद है 
मैं पहले भी उदास  रहता था 
आज भी उदास रहता हूँ 

और इसलिए भी कि
रक्त  का रंग नीला नहीं होता 
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( " परिकथा " मई - जून' 2017 में प्रकाशित )