कविता
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पिता
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सर्दियों की ठिठुरती सुबह में
मेरा पुराना कोट पहने
सिकुड़े हुए कही दूर से
दूध लेकर आते है पिता
दरवाजे पर उकडू से बैठे
बीडी पीते हुए
मुझे आता देख
हड़बड़ी में
खड़े हो जाते है पिता
सारा दिन निरीहता से
चारों तरफ देखते
चारपाई बैठे खांसते
मुझे देख कर चौंक उठते है पिता
मैं कभी भी
उनके पैर नहीं छूता
कभी हाल नहीं पूछता
जीता हूँ एक दूरी
महसूसता हूँ
उनका होना
सोचता हूँ
यह कब से हुआ पिता
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शनिवार, 21 नवंबर 2009
गुरुवार, 12 नवंबर 2009
कविता
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सत्य का चेहरा
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सत्य का एक चेहरा होता है
रंगहीन भी नहीं होता सत्य
लेकिन झूठ कि तरह
हर कहीं नहीं होता सत्य
न ही झूठ में घुल पाता है
अगर होता है कहीं तो
अलग से दिव्या आलोक लिए
दमकता रहता है सत्य
इधर वर्षों से कहीं गुम हो गया है सत्य
हम में से कई लोगो ने
अपने जीवन में कभी देखा ही नहीं
कैसा होता है सत्य
कुछ लोग निरंतर
जब की कुछ लोग
दावा कर रहे है कि
उन्होने खोज लिया है है सत्य
जिसे वे सत्य समझ रहे है
हज़ार बार बोला गया झूठ है
रगड़ रगड़ कर पैदा कि गई चमक है
वे आनंदित प्रमुदित है
अपनी खोज पर
उन्होने पा लिया है सत्य
हे ईश्वर
उन्हें बता कि सत्य क्या है
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सत्य का चेहरा
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सत्य का एक चेहरा होता है
रंगहीन भी नहीं होता सत्य
लेकिन झूठ कि तरह
हर कहीं नहीं होता सत्य
न ही झूठ में घुल पाता है
अगर होता है कहीं तो
अलग से दिव्या आलोक लिए
दमकता रहता है सत्य
इधर वर्षों से कहीं गुम हो गया है सत्य
हम में से कई लोगो ने
अपने जीवन में कभी देखा ही नहीं
कैसा होता है सत्य
कुछ लोग निरंतर
सत्य की खोज में
भटक रहे है आजभी
जब की कुछ लोग
दावा कर रहे है कि
उन्होने खोज लिया है है सत्य
जिसे वे सत्य समझ रहे है
हज़ार बार बोला गया झूठ है
रगड़ रगड़ कर पैदा कि गई चमक है
वे आनंदित प्रमुदित है
अपनी खोज पर
उन्होने पा लिया है सत्य
हे ईश्वर
उन्हें बता कि सत्य क्या है
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बुधवार, 4 नवंबर 2009
कविता
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कविता से कोई नहीं डरता
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किसी काम के नहीं होते कवि
बिजली का उड़ जाये फ्यूज तो
फ्यूज बांधना नहीं आता
नल टपकता हो तो
टपकता रहे रात भर
चाहे कितने ही कला प्रेमी हों
एक तस्वीर तरीके से नहीं
लगा सकते कमरे में
कुछ नहीं समझते कवि
पेड़ पौधों और फूलों के
विषय में खूब बात करते है
छाँट नहीं सकते
अच्छी तुरई और टिंडे
जब देखो उठा लाते है
गले हुए केले और आम
वे नमक पर लिखते है कविता
दाल में कम हो नमक तो
उन्हें महसूस नहीं होता
रोटी पर लिखते है कविता
रोटी कमाना नहीं आता
वे प्रेम पर लिखते है कविता
प्रेम जताना नहीं आता
कवियों का हो जाये ट्रांसफर
तो घूमते रहते है सचिवालय में
जब तब सुरक्षा कर्मचारी
बाहर कर देता है
प्रशासनिक अधिकारी
मिलने का समय नहीं देते
कौन पूछता है कवियों को
अच्छे पद पर हो तो बात और है
कविता से कोई नहीं डरता
कविता लिखते है
अपने आसपास के परिवेश पर
प्रकाशित होते है सुदूर पत्रिकाओं में
अपने शहर में भी
उन्हें कोई नहीं जानता
अपने घर में भी उन्हें
कोई नहीं मानता
कवियों को तो होना चाहिए
संत-फ़कीर
कवियों को होना चाहिए
निराला-कबीर
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कविता से कोई नहीं डरता
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किसी काम के नहीं होते कवि
बिजली का उड़ जाये फ्यूज तो
फ्यूज बांधना नहीं आता
नल टपकता हो तो
टपकता रहे रात भर
चाहे कितने ही कला प्रेमी हों
एक तस्वीर तरीके से नहीं
लगा सकते कमरे में
कुछ नहीं समझते कवि
पेड़ पौधों और फूलों के
विषय में खूब बात करते है
छाँट नहीं सकते
अच्छी तुरई और टिंडे
जब देखो उठा लाते है
गले हुए केले और आम
वे नमक पर लिखते है कविता
दाल में कम हो नमक तो
उन्हें महसूस नहीं होता
रोटी पर लिखते है कविता
रोटी कमाना नहीं आता
वे प्रेम पर लिखते है कविता
प्रेम जताना नहीं आता
कवियों का हो जाये ट्रांसफर
तो घूमते रहते है सचिवालय में
जब तब सुरक्षा कर्मचारी
बाहर कर देता है
प्रशासनिक अधिकारी
मिलने का समय नहीं देते
कौन पूछता है कवियों को
अच्छे पद पर हो तो बात और है
कविता से कोई नहीं डरता
कविता लिखते है
अपने आसपास के परिवेश पर
प्रकाशित होते है सुदूर पत्रिकाओं में
अपने शहर में भी
उन्हें कोई नहीं जानता
अपने घर में भी उन्हें
कोई नहीं मानता
कवियों को तो होना चाहिए
संत-फ़कीर
कवियों को होना चाहिए
निराला-कबीर
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