रविवार, 25 नवंबर 2018
गोविन्द माथुर की कविताएं।
सोमवार, 19 नवंबर 2018
रविवार, 27 मई 2018
छोड़ना ( 3 )
कहाँ कहाँ नहीं
छोड़ा गया मैं
धनवान लोगों की
सूची में छोड़ा गया
बुद्धिजीवियों की
सूची में छोड़ा गया
पुरुस्कृत लोगों की
सूची में छोड़ा गया
जब बनी कवियों की सूची
उसमें भी छोड़ा गया
न मुझे ईमानदार माना गया
न ही चरित्रवान
एक निम्न मध्यवर्गीय में
नैतिकता हो इसे भी
स्वीकार नही किया गया
मुझे न सर्वहारा माना गया
न ही पिछड़ा
आरक्षित वर्ग की
सूची में छोड़ा गया
मैं भूख से लड़ा
बेरोज़गारी से लड़ा
अन्याय के विरुद्ध
धरने दिए सड़कों पर
जुलूस में नारे लगाए
पुलिस की लाठियां खाई
जब क्रांतिकारियों की
सूची बनी
उसमें भी छोड़ा गया
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( " अभिनव संबोधन " अंक 2 - 3 / जनवरी - मार्च ' 2018 में प्रकाशित )
छोड़ना ( 2 )
छोड़ना ( 2 )
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इतना मुश्किल भी
नहीं होता छोड़ना
हम छोड़ देते हैं पहनना
दस वर्ष पुराना कोट
दो वर्ष पुराने जूते
पांच वर्ष पुरानी कमीज़
जो अभी कहीं से भी
फटी नहीं है
रद्दी खरीदने वाले को
बेच देते हैं
तीस वर्ष से सहेज कर
रखी साहित्यिक पत्रिकाएं
कबाड़ी को दे देते हैं
बीस साल पुराना स्कूटर
जो अब भी काम दे जाता था
तीस - चालीस किक मारने के बाद
मुश्किल भी होता है
छोड़ते हुए भी छोड़ना
सहेज कर रख लेते हैं
चालीस वर्ष पुरानी
कलाई घड़ी जो चलती थी
हाथ से चाबी भरने पर
जिसके पुर्जे अब
कहीं नहीं मिलते शहर में
बहुत मुश्किल होता है
फिर भी छोड़ देते हैं
उन घरों में जाना
जिन घरों को बचपन से
समझते रहे अपना घर
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( " अभिनव संबोधन " जनवरी' - मार्च' 2018)
गुरुवार, 19 अप्रैल 2018
छोड़ना ( 1 )
छोड़ना
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( एक)
आसान नहीं होता
कुछ भी छोड़ना
फिर भी छूट जाता है
बहुत कुछ समय के साथ
जैसे कि छूट जाता है
अपना घर
गलियां, चौराहे और
नीम का पेड़
छूट जाता है अपना शहर
अपना आकाश
छूट जाते हैं बचपन के दोस्त
छूटती नहीं हैं
किन्तु स्मृतियाँ
घर बदलने पर भी
शहर बदलने पर भी
उम्र बढ़ने के साथ
छूट जाते हैं स्वप्न
छूट जाता है बचपन
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( " अभिनव संबोधन " जनवरी' - मार्च " 2018