गुरुवार, 20 अगस्त 2009

कविता ------ जब बच्चे की खुलती है नींद


जब बच्चे की खुलती है नींद
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जब बच्चे की खुलती है नींद
वह विस्मित हो कर
देखता है चारों और

धीरे धीरे पहचानता है
दीवारों को
देखता है खिड़की और दरवाजे

माँ को देख कर
पुलक उठता है उसका मन
हाथ पैर मारता है - बच्चा

माँ की गोद में
मचलता है बच्चा
दूध की तलाश में
चिपट जाता है छातियों से

बच्चे की रोने की
आवाज़ से जाग जाता है घर


बच्चा यहाँ से
शुरू करता है
जीवन संघर्ष

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