बुधवार, 15 जुलाई 2009

चापलूस

चापलूस
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चापलूसी करना एक कला है
मूर्खों के वश की बात नहीं
चतुर और चालाक ही
कर सकते है चापलूसी

चापलूस होते है शिष्ट और सभ्य
अभद्रता से पेश नहीं आते

चापलूस जानते है
कब गधे को बाप कहना चाहिए
कब बाप को गधा
उन्हें मालूम है गधे को
गधा कहना भी जरूरी है

अक्सर प्रशंसाकामी
घिरे रहते है चापलूसों से
कहते है उन्हें चापलूसी पसंद नहीं
चापलूस प्रभावित होते है उनके सिध्दान्त से
कलात्मकता से करते है प्रशंसा
प्रशंसाकामी गले से लगा लेते है चापलूस को


चापलूस बहुत कम दूरी रखते है
सच और झूठ में
एक झीनी सी चादर रखते है
अंधेरे और उजाले के बीच

रोने की तरह हँसते है
हंसने की तरह रोते है
उनकी एक आँख में होते है
खुशी के आंसू
दूसरी आँख में दुख के

हर युग में हुए है चापलूस
यदि चापलूस नहीं होते
बहुत से महान , महान नहीं होते

चापलूस किसी युग में असफल नहीं होते
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3 टिप्‍पणियां:

  1. waah bhaai aapaka jabaab nahi .......bahut hi satik bat kahi aapne.....aapki rachanao ka kayal hu mai

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  2. चापलूसी की कला भी तो विद्यालयो मे पढाया जाना चाहिये
    बहुत अच्छी रचना

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  3. yadi chaplus nahi hote
    to kai mahan ,mahan nahi hote.
    ....achhi lagi....
    suresh sharma

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