चिडियों से संवाद करती स्त्री
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अपने घर के छोटे से बगीचे में
जहाँ लगा रखे थे कुछ पेड़ पौधे
बाँध रखा था एक परिंडा
वह स्त्री सूरज निकलने से पहले
परिवार की नींद खुलने पहले
भोर में चिडियों से बात चीत करती
सुनाती अपने , सुनती उनके हाल
तिनकों की तलाश में जाने से पहले
रंगबिरंगी चिडियां
उस स्त्री के इर्द गिर्द फुदकती रहती
स्त्री व्दारा आटेकी छोटी छोटी
बिखराई गई गोलियों को अपनी
चोंच में दबाती हुई चिडियां
कभी स्त्री के कंधों पर चढ़ जाती
कभी बैठ जाती सिर पर
उस प्रोढ़ स्त्री ने
निकाल रखे थे चिडियों के नाम
सोनपंखी , नीलकंठी ,जैसे नामों के साथ
कालीकलूटी जैसा नाम भी था
वह स्त्री कभी डांट भी देती थी चिडियों को
नाराज़ भी होजाती थी उनसे
थोडी ही देर में उनके मधुर गान पर
रीझ भी जाती थी
उस स्त्री ने देखे थे कई पतझर
चिडियों की व्यथा समझती थी
चिडियों से पूछती तुम खुश तो हो
चिडियों को अपने दुख भी बताती
चिडियां सांत्वना देती उस स्त्री को
स्त्री समझती थी चिडियों की भाषा
चिडियां समझती थी
स्त्री का दुख सदियों से
काम पर जाने से पहले
चिडियां अनुमति मांगती स्त्री से
स्त्री फुर्र --- फुर्र --- कहती उडा देती चिडियों को
एक और दिन में डूब जाने के लिए
एक और रात में समा जाने के लिए
चिडियां उड़ जाती
ओझल हो जाती स्त्री की आंखों से
कल फिर आने के लिए
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गुरुवार, 2 जुलाई 2009
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ek gaharari chintan se utpanna huee kawita.............bahut hi sundar
जवाब देंहटाएंstry jo ghar ki lakshmi hoti hai
जवाब देंहटाएंaapne usake mahatv ka varnan itane sundar bhav me
kiya ....aap ki rachana bahut hi bhavpurn hai
bahut bahut badhyai
बहुत गहरे भाव लिये सुन्दर कविता आभार्
जवाब देंहटाएंbahut khob !
जवाब देंहटाएंmere blog par gouraiya ke bare me jaroor padhe.
www.chadan-rag.blogspot.com