मंगलवार, 8 सितंबर 2009

जब वे बच्चे नहीं रहेगें

जब वे बच्चे  नहीं रहेगें 
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जब वे बच्चे नहीं  रहेगें 
तब वे तलाशेगें 
 वे रास्ते जहाँ से 
गुजरते थे दिन में कई कई बार 

उनकी आँखों में उभर आयेंगे 
एक साथ कई शहर 
पीले,हरे,सफ़ेद  मकान 
और बदलते  पडौसी 

यात्रा  दर  यात्रा 
बस की खिड़कियों से 
पीछे छूटते मकान 
खेत और गायें 
बस में 
मूंगफली बेचता लड़का 
झगड़ता  हुआ एक गंजा आदमी


जब बच्चे नहीं रहेगें 
तब वे भूल चुके होंगे 
स्कूल का रास्ता 
लेकिन याद रहेगी 
अंग्रेजी पढाने वाली टीचर 
जो दिखती थी परियों जैसी 


जब वे बच्चे नहीं रहेगें 
तब वे नहीं ढूंढ पाएंगे 
अपने उन दोस्तों को 
जिनके साथ खेलतेथे 
झगडा होने पर 
फाड़ दिया करते  थे 
एक दूसरे की कमीज़ 


जब वे बच्चे नहीं रहेगें 
तब उनके पास शेष रह जाएँगी  स्मर्तियाँ 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. स्मृतियाँ भी फ़टी जेब के चनों जैसी धीरे धीरे गुम होती रहती हैं..आखिर मे तो बस खाली फटी जेब ही रह जाती है अपने पास..
    बहुत शानदार रचना..आज की सबसे उम्दा कविताओं मे एक..बधाई.

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  2. जब वे बच्चे नहीं रहेगें
    तब उनके पास शेष रह जाएँगी स्मर्तियाँ
    बहुत सही .. सुंदर रचना !!

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