रविवार, 20 सितंबर 2020

कविता : समय और दूरी

समय और दूरी
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   (  तीन  )
अब दूरियां ज्यादा हैं
और समय कम

शहर में एक जगह से
दूसरी जगह तक  पहुंचने में
लग जाता है एक प्रहर
कभी कभी इससे भी ज्यादा

दूर दूर बसी कॉलोनियों में 
रहते हैं रिश्तेदार, मित्र, परिचित
महीनों मिलना नहीं होता
फोन - मोबाइल पर बात हो जाती है
किसी से मिलने जाना हो 
पूरा दिन निकल जाता है

जो शहर पैदल या साइकिल पर
नाप लिया जाता था
उस शहर में अब स्कूटर, मोटर साइकिल
या कार से जाने पर भी
दूरी महसूस होती है
सड़कों पर जाम लगा रहता है वाहनों का
साइकिल कहीं नजर नहीं आती

जिस से मिलने जाना होता है
उसके पास भी समय नहीं होता
मिलना इस तरह होता है
जैसे छू कर आ गए हों
किसी इमारत को

औपचारिक बातचीत और
स्वादिष्ट व्यंजनों के बीच
जल्दी रहती है लौटने की
फिर भी शाम होने से पहले
नहीं पहुंच पाते घर

एक दिन में एक ही जगह
जाया जा सकता है
दूसरी जगह जाने का
न समय होता है, न ही साहस
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गिरना
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सीढियां चढ़ते - उतरते
गिर सकता है। आदमी

सड़क पर चलते हुए
ठोकर खा कर
गिर सकता है  आदमी
अनेक अवसर होते हैं
गिर जाने के
बिना किसी अवसर के भी
गिर सकता है आदमी

सम्हलने के नियम नहीं होते
गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार भी
गिर सकता आदमी

किसी के चरित्र पर लांछन नहीं
गिरना स्वाभाविक क्रिया है
सद्चरित्र होने की प्रक्रिया में भी
गिर सकता है  आदमी
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( प्रकाशित " वागर्थ "  भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, जून' 2018 )
जून"  2018 )

शनिवार, 19 सितंबर 2020

कविता : समय और दूरी

समय और दूरी
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    ( एक )
समय बहुत था
दूरियां कम

एक चौराहे से दूसरे चौराहे तक
पहुंचने में कितना समय लगता

सोचने भर की देरी थी
दूसरे ही पल वहाँ होते
तीसरे पल तीसरी जगह

कई बार तो आधी दूरी भी
पार नहीं करनी पड़ती थी
जिसके पास जाना होता
वह खुद ही आ रहा होता

बीच सड़क पर खड़े रहते
कितनी देर तक
आसपास से गुजर जाते
कितने ही लोग
कोई नहीं पूछता
कहाँ जाना है  हमें

कितना ही समय हो जाये
समय से पहले ही पहुंच जाते
जहाँ हमें पहुंचना होता
वहाँ हमारी कोई  प्रतीक्षा
नहीं कर रहा होता था
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      समय और दूरी
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           (  दो  )
कितनी भी दूर जाना होता
पैदल ही नाप लेते सड़क
चंद पल सुस्ताये बिना
लौट आते उतनी ही दूर
फिर भी थकान नहीं होती

जो मित्र हमें घर छोड़ने आता
उसे घर छोड़ने चले जाते
लौटते हुए राह में
कुछ याद आ जाता
उसे बताने चले जाते
घर पहुंचने की जल्दी नहीं होती
बीच में कोई मिल गया तो
उसके साथ चौराहे पर खड़े रह जाते

घर लौट कर फिर लौट जाते
कोई नहीं पूछता
कहाँ से आये हो 
कहाँ जा रहे हो

कितनी कम थी
सड़कों की लम्बाई
कई  चक्कर काटने के बाद भी
शाम होने से पहले घर लौट आते

पेड़ों पर चहचहा रही  होती चिड़ियाँ
और हम छत पर
पतंग उड़ा रहे होते 
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( प्रकाशित  " हिंदी जगत " नई दिल्ली
जुलाई - सितम्बर ' 2018  )

गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समझदार

अपनी अपनी होती है समझ
कुछ ज्यादा समझदार होते है, कुछ कम
कम समझदार अपने को
ज्यादा समझदार समझते हैं
ज्यादा समझदार होते हैं
वे तो समझदार होते ही हैं

समझदार अक्सर
किसी को नहीं समझते
वे अपनी ही समझ को
समझते हैं सही

अगर अपनी समझ से कहने वाला
उम्र, पद या हैसियत में
रहा हो कम तो
समझदार कह सकता है
अभी समझते नहीं हो

दो समझदार  एक - दूसरे को
समझते हैं ना समझ

जो वास्तव में ना समझ हैं
वह अपनी समझ से
जो कर लेता है
उसमें रहता है खुश

समझदार कभी
अपनी समझ से
नहीं होता संतुष्ट
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( प्रकाशित  " जनतेवर " जयपुर, 15 जून ' 2018

पुराने मित्र

पुराने मित्र
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समय न मिलने की
शिकायत के बावजूद
कई घंटे बिता देते हैं
कम्प्यूटर - मोबाइल पर
सामाजिक न होते हुए भी
सामाजिक बने रहते हैं
फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स एप
इंस्टाग्राम, टम्बलर पर

पुराने मित्रों के जिनके
घर जाते थे  प्रतिदिन
नए घर ढूंढ़ते हैं गूगल मैप पर
अपरिचित से पहुंचते हैं
बच्चे पहचानते नहीं

मित्रों में बची है  ओपचारिकता
शिकायत करते हैं न मिलने की
कुछ देर याद करते हैं पुराने दिन
लगाते हैं नकली ठहाके

चाय पीते हुए
एक दूसरे का नया मोबाइल
व्हाट्सएप नंबर लेते हैं
समय कम मिलने के
बहाने के साथ लौट आते हैं
झूठा वादा करते हुए
जल्दी ही मिलते हैं फिर
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( प्रकाशित  " जनतेवर " जयपुर, 15 जून' 2018 )

रविवार, 25 नवंबर 2018

गोविन्द माथुर की कविताएं।

Listen to Govind Mathur recites his poems by Durgaprasad #np on #SoundCloud https://soundcloud.com/durgaprasad-2/govind-mathur-recites-his-poems

गोविन्द माथुर की कविताएं।

https://m.soundcloud.com/durgaprasad-2/govind-mathur-recites-his-poems

रविवार, 27 मई 2018

छोड़ना ( 3 )

कहाँ  कहाँ नहीं
छोड़ा गया मैं

धनवान लोगों की
सूची में छोड़ा गया
बुद्धिजीवियों की
सूची में छोड़ा गया
पुरुस्कृत लोगों की
सूची में छोड़ा गया

जब बनी कवियों की सूची
उसमें भी छोड़ा गया

न मुझे ईमानदार माना गया
न ही चरित्रवान
एक निम्न मध्यवर्गीय में
नैतिकता हो इसे भी
स्वीकार नही किया गया

मुझे न सर्वहारा माना गया
न ही पिछड़ा
आरक्षित वर्ग की
सूची में छोड़ा गया

मैं भूख से लड़ा
बेरोज़गारी से लड़ा
अन्याय के विरुद्ध
धरने दिए सड़कों पर
जुलूस में नारे लगाए
पुलिस की लाठियां खाई

जब क्रांतिकारियों की
सूची बनी
उसमें भी छोड़ा गया
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( " अभिनव संबोधन " अंक 2 - 3   / जनवरी - मार्च ' 2018 में प्रकाशित )

छोड़ना ( 2 )

छोड़ना ( 2 )
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इतना मुश्किल भी
नहीं होता छोड़ना

हम छोड़ देते हैं पहनना
दस वर्ष पुराना कोट
दो  वर्ष पुराने जूते
पांच वर्ष पुरानी कमीज़
जो अभी कहीं से भी
फटी नहीं है

रद्दी खरीदने वाले को
बेच देते हैं
तीस वर्ष से सहेज कर
रखी साहित्यिक पत्रिकाएं

कबाड़ी को दे देते हैं
बीस साल पुराना स्कूटर
जो अब भी काम दे जाता था
तीस - चालीस किक मारने के बाद

मुश्किल भी होता है
छोड़ते हुए भी छोड़ना
सहेज कर रख लेते हैं
चालीस वर्ष पुरानी
कलाई घड़ी जो चलती थी
हाथ से चाबी भरने पर
जिसके पुर्जे अब
कहीं नहीं मिलते शहर में

बहुत मुश्किल होता है
फिर भी छोड़ देते हैं
उन घरों में जाना
जिन घरों को बचपन से
समझते रहे अपना घर
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( " अभिनव संबोधन "  जनवरी' - मार्च' 2018)

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

छोड़ना ( 1 )

छोड़ना
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( एक)

आसान नहीं होता
कुछ भी छोड़ना

फिर भी छू जाता है
बहुत कुछ समय के साथ
जैसे कि छूट जाता है 
अपना घर
गलियां, चौराहे और
नीम का पेड़

छूट जाता है अपना शहर
अपना  आकाश
छूट जाते हैं बचपन के दोस्त

छूटती नहीं हैं
किन्तु स्मृतियाँ
घर बदलने पर भी
शहर बदलने पर भी

उम्र बढ़ने के साथ
छूट जाते हैं स्वप्न
छूट जाता है बचपन
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(  " अभिनव संबोधन " जनवरी' - मार्च " 2018

गुरुवार, 22 जून 2017

साक्षात्कार : गोविन्द माथुर

Govind Mathur: http://www.youtube.com/playlist?list=PL5WRkh_KnLaVRJJVrXxXRUhhqWyKs7UXp