कविता
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मैं न भी जानता तो क्या होता
जानता भी हूँ तो क्या हुआ
मुझे इस यात्रा में शामिल होना था
और मैं हो गया
ये सब ऐसे ही हुआ
जैसे मेरा जन्म हो गया
ये बात और है कि
मैं किसी से साथ हीं चल सका
इसलिए नहीं की सभी लोग
बेईमान या भ्र्ष्ट है या कि
लोगों ने ही मुझे छोड़ दिया
कारण चाहे कुछ भी रहा हो
इस लम्बी यात्रा में मुझे
अकेला ही होना था
कुछ बहुत दूर तक साथ चल कर
मुड़ गए सुख - सुविधा की गली में
मैं पांव के कांटे निकाल कर
अकेला ही चलता रहा जा रहा हूँ
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