बुधवार, 4 नवंबर 2009

कविता 
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कविता से कोई नहीं डरता 
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किसी काम के  नहीं होते कवि 
बिजली  का उड़  जाये फ्यूज तो 
फ्यूज  बांधना  नहीं  आता 
नल टपकता  हो तो 
टपकता रहे  रात भर 

चाहे  कितने  ही कला प्रेमी  हों 
एक तस्वीर तरीके  से नहीं 
लगा सकते  कमरे में 

कुछ नहीं समझते कवि 
पेड़ पौधों और फूलों के 
विषय  में खूब  बात करते है 
छाँट  नहीं सकते 
अच्छी तुरई और  टिंडे 
जब देखो उठा लाते  है 
गले हुए  केले और आम 

वे नमक  पर लिखते है कविता 
दाल में कम हो नमक तो 
उन्हें  महसूस नहीं होता 

रोटी पर लिखते है कविता 
रोटी कमाना नहीं आता 
वे प्रेम पर लिखते है कविता 
प्रेम जताना  नहीं आता 

कवियों का हो जाये ट्रांसफर 
तो घूमते रहते है सचिवालय  में 
जब तब सुरक्षा  कर्मचारी 
बाहर कर देता है 
प्रशासनिक अधिकारी 
मिलने का समय नहीं देते 

कौन  पूछता है कवियों को 
अच्छे पद पर हो तो बात और है 
कविता से कोई नहीं डरता 

कविता लिखते है 
अपने आसपास  के परिवेश पर 
प्रकाशित होते है सुदूर पत्रिकाओं  में 
अपने  शहर में भी 
उन्हें  कोई नहीं जानता
अपने घर में भी उन्हें 
कोई नहीं मानता 


कवियों  को तो होना चाहिए 
संत-फ़कीर 
कवियों  को होना चाहिए 
निराला-कबीर 
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2 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल यथार्थ दर्शन करवा दी बन्धुवर .......मुझे भी ऐसा ही लगता है !एक सुन्दर भावाभिव्यक्ति !

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