गुरुवार, 4 अप्रैल 2019

समझदार

अपनी अपनी होती है समझ
कुछ ज्यादा समझदार होते है, कुछ कम
कम समझदार अपने को
ज्यादा समझदार समझते हैं
ज्यादा समझदार होते हैं
वे तो समझदार होते ही हैं

समझदार अक्सर
किसी को नहीं समझते
वे अपनी ही समझ को
समझते हैं सही

अगर अपनी समझ से कहने वाला
उम्र, पद या हैसियत में
रहा हो कम तो
समझदार कह सकता है
अभी समझते नहीं हो

दो समझदार  एक - दूसरे को
समझते हैं ना समझ

जो वास्तव में ना समझ हैं
वह अपनी समझ से
जो कर लेता है
उसमें रहता है खुश

समझदार कभी
अपनी समझ से
नहीं होता संतुष्ट
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( प्रकाशित  " जनतेवर " जयपुर, 15 जून ' 2018

पुराने मित्र

पुराने मित्र
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समय न मिलने की
शिकायत के बावजूद
कई घंटे बिता देते हैं
कम्प्यूटर - मोबाइल पर
सामाजिक न होते हुए भी
सामाजिक बने रहते हैं
फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स एप
इंस्टाग्राम, टम्बलर पर

पुराने मित्रों के जिनके
घर जाते थे  प्रतिदिन
नए घर ढूंढ़ते हैं गूगल मैप पर
अपरिचित से पहुंचते हैं
बच्चे पहचानते नहीं

मित्रों में बची है  ओपचारिकता
शिकायत करते हैं न मिलने की
कुछ देर याद करते हैं पुराने दिन
लगाते हैं नकली ठहाके

चाय पीते हुए
एक दूसरे का नया मोबाइल
व्हाट्सएप नंबर लेते हैं
समय कम मिलने के
बहाने के साथ लौट आते हैं
झूठा वादा करते हुए
जल्दी ही मिलते हैं फिर
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( प्रकाशित  " जनतेवर " जयपुर, 15 जून' 2018 )

रविवार, 25 नवंबर 2018

गोविन्द माथुर की कविताएं।

Listen to Govind Mathur recites his poems by Durgaprasad #np on #SoundCloud https://soundcloud.com/durgaprasad-2/govind-mathur-recites-his-poems

गोविन्द माथुर की कविताएं।

https://m.soundcloud.com/durgaprasad-2/govind-mathur-recites-his-poems

रविवार, 27 मई 2018

छोड़ना ( 3 )

कहाँ  कहाँ नहीं
छोड़ा गया मैं

धनवान लोगों की
सूची में छोड़ा गया
बुद्धिजीवियों की
सूची में छोड़ा गया
पुरुस्कृत लोगों की
सूची में छोड़ा गया

जब बनी कवियों की सूची
उसमें भी छोड़ा गया

न मुझे ईमानदार माना गया
न ही चरित्रवान
एक निम्न मध्यवर्गीय में
नैतिकता हो इसे भी
स्वीकार नही किया गया

मुझे न सर्वहारा माना गया
न ही पिछड़ा
आरक्षित वर्ग की
सूची में छोड़ा गया

मैं भूख से लड़ा
बेरोज़गारी से लड़ा
अन्याय के विरुद्ध
धरने दिए सड़कों पर
जुलूस में नारे लगाए
पुलिस की लाठियां खाई

जब क्रांतिकारियों की
सूची बनी
उसमें भी छोड़ा गया
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( " अभिनव संबोधन " अंक 2 - 3   / जनवरी - मार्च ' 2018 में प्रकाशित )

छोड़ना ( 2 )

छोड़ना ( 2 )
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इतना मुश्किल भी
नहीं होता छोड़ना

हम छोड़ देते हैं पहनना
दस वर्ष पुराना कोट
दो  वर्ष पुराने जूते
पांच वर्ष पुरानी कमीज़
जो अभी कहीं से भी
फटी नहीं है

रद्दी खरीदने वाले को
बेच देते हैं
तीस वर्ष से सहेज कर
रखी साहित्यिक पत्रिकाएं

कबाड़ी को दे देते हैं
बीस साल पुराना स्कूटर
जो अब भी काम दे जाता था
तीस - चालीस किक मारने के बाद

मुश्किल भी होता है
छोड़ते हुए भी छोड़ना
सहेज कर रख लेते हैं
चालीस वर्ष पुरानी
कलाई घड़ी जो चलती थी
हाथ से चाबी भरने पर
जिसके पुर्जे अब
कहीं नहीं मिलते शहर में

बहुत मुश्किल होता है
फिर भी छोड़ देते हैं
उन घरों में जाना
जिन घरों को बचपन से
समझते रहे अपना घर
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( " अभिनव संबोधन "  जनवरी' - मार्च' 2018)

गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

छोड़ना ( 1 )

छोड़ना
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( एक)

आसान नहीं होता
कुछ भी छोड़ना

फिर भी छू जाता है
बहुत कुछ समय के साथ
जैसे कि छूट जाता है 
अपना घर
गलियां, चौराहे और
नीम का पेड़

छूट जाता है अपना शहर
अपना  आकाश
छूट जाते हैं बचपन के दोस्त

छूटती नहीं हैं
किन्तु स्मृतियाँ
घर बदलने पर भी
शहर बदलने पर भी

उम्र बढ़ने के साथ
छूट जाते हैं स्वप्न
छूट जाता है बचपन
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(  " अभिनव संबोधन " जनवरी' - मार्च " 2018

गुरुवार, 22 जून 2017

साक्षात्कार : गोविन्द माथुर

Govind Mathur: http://www.youtube.com/playlist?list=PL5WRkh_KnLaVRJJVrXxXRUhhqWyKs7UXp

शनिवार, 6 मई 2017

छाया

कविता 
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छाया 
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धूप  में  झुलसता  रहा 
जीवन भर 
छाया  कभी  मिली नहीं 

भीगा  कुछ देर 
बरसात  में भी 
धूप  खिली  रही 

छाया  तो  दूर  ही  रही 
मुझ  से  यहाँ तक कि 
अपनी  छाया  भी 
कभी  दिखी  नहीं 
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( "परिकथा"  मई - जून ' 2017  में  प्रकाशित  )

आकाश

कविता
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आकाश 
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हर व्यक्ति के सिर पर 
एक आकाश होता है 
चाहे बहुत दूर होता है 

आकाश है ये महसूस करने पर 
सहारा बना रहता है 

होते तो और भी कई सहारे हैं 
किन्तु वे कभी भी 
छोड़ कर जा सकते हैं 

जैसे पहाड़ टूट कर गिर सकते हैं 
बिजली कड़क कर गिर सकती है 
बादल गरज कर बरस सकते हैं 

आकाश सिर्फ मुहावरे में गिरता है 

आकाश के सिर पर रहने से 
भरोसा नहीं टूटता। 

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( "परिकथा" मई - जून ' 2017  में   प्रकाशित )