सोमवार, 29 दिसंबर 2014

दोस्ती और प्रेम

तीन  कवितायेँ
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                                 ( एक )
दोस्ती और प्रेम 
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बहुत बरसों बाद 
समझ में आया 
दोस्ती एक यथार्थ है 
प्रेम एक भावुकता 

मैंने दोस्तों के लिए 
कुछ नहीं किया 
मैं दोस्तों से प्रेम करता रहा 
दोस्त मुझ पर अहसान करते रहे 

दोस्त तुम्हारे लिए कुछ करे 
दोस्त के लिए भी कुछ  है  करना पड़ता है 
दोस्ती एक तरफ़ा नहीं होती 
प्रेम एक तरफ़ा हो सकता है 

पचास बरस बाद भी 
पूछा जा  सकता है 
तुमने दोस्तों लिए क्या किया 
यदि कुछ किया है तो 
याद भी रखना पड़ता है 
सिर्फ करना ही पर्याप्त  नहीं 
समय  आने पर  गिनाना   भी  पड़ता है 

दोस्ती एक व्यावहारिकता  है 
मैं दोस्ती को भी 
प्रेम समझता रहा  
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                                ( दो )
कवि और समाज 
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कुछ भी नहीं बदलता 
एक कवि के चले जाने से 

कवि जो करता था 
समाज को बदलने की बात 
बदल नहीं  पाया था स्वयं को भी 


कवि जानता  था 
उसकी कविता 
नहीं बदल सकती दुनिया को 

कवि के चले जाने से 
खाली हो जाती है एक कुर्सी 
सूनी हो जाती है एक मेज 
उदास हो जाती है कुछ किताबें 

कवि के चले जाने से 
भर आते है जिनकी आँखों में आंसू 
बिछुड़  जाने का  जिनको होता है दुःख 
वे कवि के  आत्मीयजन होते है 
जिनके लिए वह कवि नहीं होता  

कवि के चले जाने से 
समाचार नहीं बनता 
चुपचाप  चला जाता है कवि 
जैसे कोई गया ही नहीं हो 
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{ प्रकाशित  " वागर्थ " अंक २३३ दिसम्बर ' २०१४}

2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या आपको पहले से पता था कि नन्द बाबू इस तरह अन नोटिस्ड चले जाएंगी? बहुत उम्दा और मारक कविताएं!

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  2. दोनों ही कविताएं बहुत गहरी बात कह रही हैं।

    सादर

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