बुधवार, 1 अगस्त 2012

स्मृति

कविता 

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स्मृति 

[ एक]

ठहरता नहीं कोई पल 

ठहरता नहीं बहता हुआ जल 

ठहरता नहीं पवन 


लौट कर नहीं आते 

पल, जल और पवन 


ठहरे रहते है शहर 

शहरों में ठहरी रहती है इमारतें 

इमारतों में ठहरी स्मृतियाँ 

स्मृतियों में  ठहरी रहती है उम्र 

उम्र में ठहरा रहता है प्रेम 


एक दिन जर्जर होकर 

ढह  जाएँगी  इमारतें 

रेत में दब जायेगें  शहर 

जीवित रहेगीं स्मृतियाँ 

स्मृतियों में जीवित रहेगा प्रेम 


प्रेम में जीवित रहेगें 

पल,जल और पवन 

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स्मृति 

[दो]

खड़ा हूँ मैं 

उस निर्जल स्थान पर 

जहाँ कभी बहता था झरना  

दूर तक सुनाई  देती थी 

जल की कल कल 


खड़ा हूँ मैं 

उस निस्पंद स्थान पर 

जहाँ हंसी बिखरते हुए 

मिली थी सांवली लड़की 


जल की कल कल में 

हंसी की खिल खिल में 

डूब गए थे मेरे शब्द 

जो कहे थे मैंने 

उस सांवली लड़की से 


खड़ा हूँ मैं 

उस निर्वाक स्थान पर 

जहाँ मौन पड़े है मेरे शब्द 


मेरे शब्द सुनने के लिए 

न झरना है 

न ही वह सांवली लड़की 

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[ ' जनसत्ता ' रविवार ,15 जुलाई 2012 के रविवारी पृष्ठ में प्रकाशित ]

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