शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

कविता 
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तस्वीरों  से झांकते  पुराने मित्र 
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श्वेत श्याम तस्वीरों में 
अभी मौजूद है पुराने मित्र 
गले  में        बांहे डाले या 
कंधे पर कुहनी टिकाये

तस्वीरें  देख कर नहीं लगता 
बरसों से नहीं मिले होगें 
ये मासूम  से दिखने वाले 
दुबले पतले छोकरे 

तस्वीरों से बाहर 
मिलना नहीं होता पुराने मित्रों से 
कुछ एक को तो देखे हुए  भी 
पन्द्रह बीस साल गुजर गए 
एक शहर में रहते हुए भी 


कभी कभार  कहीं से 
खबर मिलती किसी की 
आकाश की मुत्यु   को दो साल होगये 
विमल बहुत शराब पीने लगा है 
श्याम बाबू दुबई  में है इन दिनों 


अचकचा  गया एक दिन 
अजमेरी गेट  पर अंडे खरीदते  हुए 
एक मोटे आदमी को देख कर 
प्रमोद हंस रहा था मुझे पहचान कर 
महानगर  होते        शहर में 

ऐसा  कभी ही होता है 
कोई आपको पहचान रहा हो 


ये सोच कर उदास हो जाता है मन 
जिन मित्रों के साथ जमती थी महफ़िल 
मिलते  थे हर रोज़ 
घंटों खड़े रहते थे चौराहे  पर 
वे बचपन के मित्र जीवन से निकल कर 
तस्वीरों में  रह गए है

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2 टिप्‍पणियां:

  1. tasveeron ke saath saath ye aapke dil me bhi hai tabhi to aapne yaad kiya |
    sundar rachana

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  2. बस यादें और तस्वीरें ही रह जाती हैं.

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल ’समीर’

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