मंगलवार, 12 जनवरी 2010

www.govind-mathur.blogspot.com
-----------------------------------------

कविता 
-----------
नीली धारिओं वाला स्वेटर 
------------------------------
कैसी    भी रही हो  ठण्ड 
ठिठुरा देने वाली या गुलाबी 
एक ही स्वेटर  था  मेरे पास 
नीली धारिओं वाला 


बहिन  के स्वेटर बुनने  से पहले
किसी की उतरी  हुई जाकेट 
पहन ता था मैं 
जाकेट में  गर्माहट  थी 
पर जाकेट पहन कर 
ख़ुशी नहीं मिलती थी मुझे 
एक उदासी  छा जाती थी 
मेरे चेहरे पर  

बहिन मेरे चेहरे  पर छाई 
उदासी पढ़  कर 
खुद भी उदास  हो जाया करती थी 
बहिन ने थोड़े थोड़े पैसे बचा कर 
ख़रीदे सफ़ेद नीले ऊन के गोले 
एक सहेली से मांग लाई  सलाई 

किसी पत्रिका  के बुनाई विशेषांक  से 
सीखी  बुनाई 
दो उल्टे  एक सीधा 
एक उल्टा दो सीधे  डाले फंदे 

कई  दिनों तक नापती रही 
मेरा गला और लम्बाई 
गिनती रही फंदे 
बदलती रही सलाई


ठिठुराती ठण्ड  आने से पहले 
एक दिन  बहिन ने
पहना दिया मुझे नया स्वेटर 
बहिन की ऊंगलियों  की ऊष्मा 
समां गई  थी स्वेटर में 

मेरे चेहरे पर आई  चमक 
देख कर खुश थी बहिन 
मेरा स्वेटर देख कर 
लड़कियां पूछती थी 
कलात्मक बुनाई के बारे में 


बहिन  के ससुराल जाने बाद भी 
कई वर्षों तक पहनता रहा मैं 
नीली धारिओं वाला  स्वेटर 

उस स्वेटर जैसी ऊष्मा 
फिर किसी स्वेटर में नहीं मिली 
उस स्वेटर की स्मृति  में 
आज भी ठण्ड नहीं लगती मुझे 
-------------------------------------

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहन की ममता की उष्मा..भला और कहाँ और कैसे!!


    बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!

    जवाब देंहटाएं
  2. Sahi baat hai. We like things often because of the memories associated with them, and in your case, the fact that you sister made it.

    Nice way to put it!

    जवाब देंहटाएं