कविता
----------
अच्छा कवि
--------------
मैंने कहा वे एक बहुत अच्छे आदमी है
बहुत मिलनसार जिंदादिल
गर्व उनको छू भी नहीं गया है
अपनों से छोटों से भी खुलापन रखते है
समय पर सुख दुःख में भी काम आते है
उसने कहा हाँ होंगे
क्या अच्छा आदमी होने से
कोई अच्छा कवि भी हो जाता है
बहुत घटिया कवितायेँ लिखते है वे
हम उन्हें कवि नहीं मानते
मैंने कहा वे एक बहुत अच्छे कवि है
अध्यन भी खूब है उनका
कभी हिंदी कविता की बात ही नहीं करते
सभी पत्रिकाएं छापती है उनकी कवितायेँ
कई पुरस्कार भी मिल चुके है उन्हें
उसने कहा
पुरस्कार मिलने से कोई बड़ा कवि नहीं हो जाता
विदेशी साहित्य की चोरी करते है
अच्छा कवि होने के लिए
अच्छा आदमी भी होना चाहिए
बहुत घटिया आदमी है वे
हम उन्हें कवि नहीं मानते
मैंने कहा वे एक बहुत प्रतिष्ठित कवि है
मानवीय गुन भी कूट कूट कर भरे है उनमे
अपनी माटी की महक है उनकी कविताओं में
लखटकिया पुरस्कार भी मिल चुका है
नामवर आलोचक भी प्रशंसा करते है उनकी
उसने कहा
सब जोड़ तोड़ और सम्बन्धों के सहारे किया है
बड़े शातिर और हिसाबी आदमी है वे
पूरा एक गुट है उनका
जो एक दूसरे की प्रशंसा करता रहता है
हम उन्हें कवि नहीं मानते
वे हमारे गुट में नहीं है
--------------------------
शनिवार, 26 दिसंबर 2009
सोमवार, 14 दिसंबर 2009
कविता
-------------
वह आदमी कुछ नहीं बोलता
-------------------------------
वह आदमी कुछ नहीं बोलता
रहता है एक दम चुप
सुनता है सब की
वह पैदा हुआ है केवल सुनने के लिए
सारे आदर्श ढोने है उसे
देश की अखंडता का भार है उस पर
नैतिकता ढूंढी जाती है उसमे
ईमानदार होना है केवल उसे
अशिक्षित और निरीह
बने रहना है उसे
ताकि देश के कर्णधार
राजनीतिज्ञ ,पूंजीपति और विद्वान
दिखा सके उसे राह
वह पैदा हुआ है केवल राह देखने के लिए
धर्म और जातिवाद से ऊपर
उठ कर जीना है उसे
सामाजिक कुरूतियों से लड़ना है
गर्व करना है अपनी भाषा पर
देश की अस्मिता और संस्कृति को
बचाना है केवल उसे
क्योंकि वह एक महान देश का
आम नागरिक है.
-------------------------------------
सोमवार, 7 दिसंबर 2009
कविता
--------
बचा हुआ स्वाद
-------------------
जीभ का भूला हुआ स्वाद
जीभ पर नहीं है
सुरक्षित है मेरी स्मृति में
न रोटियों में
न दाल में
न अचार में
बचा है स्वाद
मेरी स्मृतियों में
बचाए रखना चाहता हूँ
थोड़ी सी महक
थोड़ी सी गंध
थोड़ी सी भूख
थोड़ी सी प्यास
अपनी स्मृतियों में
बचाए रखना चाहता हूँ
खाली पेट देखे स्वप्न
खट्टे मीठे फालसों
काली जामुन और
लाल बेर का रंग
मुंह में आया पानी
और बचा हुआ स्वाद
अपनी स्मृतियों में.
----------------------
--------
बचा हुआ स्वाद
-------------------
जीभ का भूला हुआ स्वाद
जीभ पर नहीं है
सुरक्षित है मेरी स्मृति में
न रोटियों में
न दाल में
न अचार में
बचा है स्वाद
मेरी स्मृतियों में
बचाए रखना चाहता हूँ
थोड़ी सी महक
थोड़ी सी गंध
थोड़ी सी भूख
थोड़ी सी प्यास
अपनी स्मृतियों में
बचाए रखना चाहता हूँ
खाली पेट देखे स्वप्न
खट्टे मीठे फालसों
काली जामुन और
लाल बेर का रंग
मुंह में आया पानी
और बचा हुआ स्वाद
अपनी स्मृतियों में.
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शनिवार, 21 नवंबर 2009
कविता
------
पिता
-------
सर्दियों की ठिठुरती सुबह में
मेरा पुराना कोट पहने
सिकुड़े हुए कही दूर से
दूध लेकर आते है पिता
दरवाजे पर उकडू से बैठे
बीडी पीते हुए
मुझे आता देख
हड़बड़ी में
खड़े हो जाते है पिता
सारा दिन निरीहता से
चारों तरफ देखते
चारपाई बैठे खांसते
मुझे देख कर चौंक उठते है पिता
मैं कभी भी
उनके पैर नहीं छूता
कभी हाल नहीं पूछता
जीता हूँ एक दूरी
महसूसता हूँ
उनका होना
सोचता हूँ
यह कब से हुआ पिता
-------------------------
------
पिता
-------
सर्दियों की ठिठुरती सुबह में
मेरा पुराना कोट पहने
सिकुड़े हुए कही दूर से
दूध लेकर आते है पिता
दरवाजे पर उकडू से बैठे
बीडी पीते हुए
मुझे आता देख
हड़बड़ी में
खड़े हो जाते है पिता
सारा दिन निरीहता से
चारों तरफ देखते
चारपाई बैठे खांसते
मुझे देख कर चौंक उठते है पिता
मैं कभी भी
उनके पैर नहीं छूता
कभी हाल नहीं पूछता
जीता हूँ एक दूरी
महसूसता हूँ
उनका होना
सोचता हूँ
यह कब से हुआ पिता
-------------------------
गुरुवार, 12 नवंबर 2009
कविता
-----------
सत्य का चेहरा
------------------
सत्य का एक चेहरा होता है
रंगहीन भी नहीं होता सत्य
लेकिन झूठ कि तरह
हर कहीं नहीं होता सत्य
न ही झूठ में घुल पाता है
अगर होता है कहीं तो
अलग से दिव्या आलोक लिए
दमकता रहता है सत्य
इधर वर्षों से कहीं गुम हो गया है सत्य
हम में से कई लोगो ने
अपने जीवन में कभी देखा ही नहीं
कैसा होता है सत्य
कुछ लोग निरंतर
जब की कुछ लोग
दावा कर रहे है कि
उन्होने खोज लिया है है सत्य
जिसे वे सत्य समझ रहे है
हज़ार बार बोला गया झूठ है
रगड़ रगड़ कर पैदा कि गई चमक है
वे आनंदित प्रमुदित है
अपनी खोज पर
उन्होने पा लिया है सत्य
हे ईश्वर
उन्हें बता कि सत्य क्या है
---------------------------
-----------
सत्य का चेहरा
------------------
सत्य का एक चेहरा होता है
रंगहीन भी नहीं होता सत्य
लेकिन झूठ कि तरह
हर कहीं नहीं होता सत्य
न ही झूठ में घुल पाता है
अगर होता है कहीं तो
अलग से दिव्या आलोक लिए
दमकता रहता है सत्य
इधर वर्षों से कहीं गुम हो गया है सत्य
हम में से कई लोगो ने
अपने जीवन में कभी देखा ही नहीं
कैसा होता है सत्य
कुछ लोग निरंतर
सत्य की खोज में
भटक रहे है आजभी
जब की कुछ लोग
दावा कर रहे है कि
उन्होने खोज लिया है है सत्य
जिसे वे सत्य समझ रहे है
हज़ार बार बोला गया झूठ है
रगड़ रगड़ कर पैदा कि गई चमक है
वे आनंदित प्रमुदित है
अपनी खोज पर
उन्होने पा लिया है सत्य
हे ईश्वर
उन्हें बता कि सत्य क्या है
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बुधवार, 4 नवंबर 2009
कविता
---------
कविता से कोई नहीं डरता
--------------------------------
किसी काम के नहीं होते कवि
बिजली का उड़ जाये फ्यूज तो
फ्यूज बांधना नहीं आता
नल टपकता हो तो
टपकता रहे रात भर
चाहे कितने ही कला प्रेमी हों
एक तस्वीर तरीके से नहीं
लगा सकते कमरे में
कुछ नहीं समझते कवि
पेड़ पौधों और फूलों के
विषय में खूब बात करते है
छाँट नहीं सकते
अच्छी तुरई और टिंडे
जब देखो उठा लाते है
गले हुए केले और आम
वे नमक पर लिखते है कविता
दाल में कम हो नमक तो
उन्हें महसूस नहीं होता
रोटी पर लिखते है कविता
रोटी कमाना नहीं आता
वे प्रेम पर लिखते है कविता
प्रेम जताना नहीं आता
कवियों का हो जाये ट्रांसफर
तो घूमते रहते है सचिवालय में
जब तब सुरक्षा कर्मचारी
बाहर कर देता है
प्रशासनिक अधिकारी
मिलने का समय नहीं देते
कौन पूछता है कवियों को
अच्छे पद पर हो तो बात और है
कविता से कोई नहीं डरता
कविता लिखते है
अपने आसपास के परिवेश पर
प्रकाशित होते है सुदूर पत्रिकाओं में
अपने शहर में भी
उन्हें कोई नहीं जानता
अपने घर में भी उन्हें
कोई नहीं मानता
कवियों को तो होना चाहिए
संत-फ़कीर
कवियों को होना चाहिए
निराला-कबीर
----------------------------
---------
कविता से कोई नहीं डरता
--------------------------------
किसी काम के नहीं होते कवि
बिजली का उड़ जाये फ्यूज तो
फ्यूज बांधना नहीं आता
नल टपकता हो तो
टपकता रहे रात भर
चाहे कितने ही कला प्रेमी हों
एक तस्वीर तरीके से नहीं
लगा सकते कमरे में
कुछ नहीं समझते कवि
पेड़ पौधों और फूलों के
विषय में खूब बात करते है
छाँट नहीं सकते
अच्छी तुरई और टिंडे
जब देखो उठा लाते है
गले हुए केले और आम
वे नमक पर लिखते है कविता
दाल में कम हो नमक तो
उन्हें महसूस नहीं होता
रोटी पर लिखते है कविता
रोटी कमाना नहीं आता
वे प्रेम पर लिखते है कविता
प्रेम जताना नहीं आता
कवियों का हो जाये ट्रांसफर
तो घूमते रहते है सचिवालय में
जब तब सुरक्षा कर्मचारी
बाहर कर देता है
प्रशासनिक अधिकारी
मिलने का समय नहीं देते
कौन पूछता है कवियों को
अच्छे पद पर हो तो बात और है
कविता से कोई नहीं डरता
कविता लिखते है
अपने आसपास के परिवेश पर
प्रकाशित होते है सुदूर पत्रिकाओं में
अपने शहर में भी
उन्हें कोई नहीं जानता
अपने घर में भी उन्हें
कोई नहीं मानता
कवियों को तो होना चाहिए
संत-फ़कीर
कवियों को होना चाहिए
निराला-कबीर
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सोमवार, 26 अक्टूबर 2009
कविता
---------
दूसरे शहर में
------------------
दूसरे शहर में घर नहीं होता
समाचार पत्र में नहीं मिलते
अपने शहर के समाचार
दूसरे शहर में
सड़क पर चलते हुए
ये अहसास साथ चलता
यहाँ इस शहर में
मुझे कोई नहीं पहचानता
घर से दूर
अधिक याद आता है घर
बार बार याद आते है बच्चे
लौट आयें होगें स्कूल से
खेल रहे होंगें शायद
पूछ रहे होंगे मम्मी से
कल सुबह तो आ ही जायेगें पापा
दूसरे शहर में ठण्ड
अधिक लगती है
थक जाता हूँ बहुत जल्दी
दूसरे शहर में
मुझे नींद नहीं आती
रहता है पेट ख़राब
खाना कम खाता हूँ
सिगरेट ज्यादा पीता हूँ
दूसरे शहर की इमारते
लगती है अजायबघर
लड़कियां लगती है खूबसूरत
दूसरा शहर लगता है
दूसरे देश में
दूसरे शहर से
अपना शहर लगता है
बहुत दूर
दूसरे शहर से
लौट कर अच्छा लगता है
नक्शे में ढूँढना
दूसरा शहर
---------------------------------
शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009
कविता
-------------
तस्वीरों से झांकते पुराने मित्र
------------------------------------
श्वेत श्याम तस्वीरों में
अभी मौजूद है पुराने मित्र
गले में बांहे डाले या
कंधे पर कुहनी टिकाये
तस्वीरें देख कर नहीं लगता
बरसों से नहीं मिले होगें
ये मासूम से दिखने वाले
दुबले पतले छोकरे
तस्वीरों से बाहर
मिलना नहीं होता पुराने मित्रों से
कुछ एक को तो देखे हुए भी
पन्द्रह बीस साल गुजर गए
एक शहर में रहते हुए भी
कभी कभार कहीं से
खबर मिलती किसी की
आकाश की मुत्यु को दो साल होगये
विमल बहुत शराब पीने लगा है
श्याम बाबू दुबई में है इन दिनों
अचकचा गया एक दिन
अजमेरी गेट पर अंडे खरीदते हुए
एक मोटे आदमी को देख कर
प्रमोद हंस रहा था मुझे पहचान कर
महानगर होते शहर में
ऐसा कभी ही होता है
कोई आपको पहचान रहा हो
ये सोच कर उदास हो जाता है मन
जिन मित्रों के साथ जमती थी महफ़िल
मिलते थे हर रोज़
घंटों खड़े रहते थे चौराहे पर
वे बचपन के मित्र जीवन से निकल कर
तस्वीरों में रह गए है
-----------------------------------------
-------------
तस्वीरों से झांकते पुराने मित्र
------------------------------------
श्वेत श्याम तस्वीरों में
अभी मौजूद है पुराने मित्र
गले में बांहे डाले या
कंधे पर कुहनी टिकाये
तस्वीरें देख कर नहीं लगता
बरसों से नहीं मिले होगें
ये मासूम से दिखने वाले
दुबले पतले छोकरे
तस्वीरों से बाहर
मिलना नहीं होता पुराने मित्रों से
कुछ एक को तो देखे हुए भी
पन्द्रह बीस साल गुजर गए
एक शहर में रहते हुए भी
कभी कभार कहीं से
खबर मिलती किसी की
आकाश की मुत्यु को दो साल होगये
विमल बहुत शराब पीने लगा है
श्याम बाबू दुबई में है इन दिनों
अचकचा गया एक दिन
अजमेरी गेट पर अंडे खरीदते हुए
एक मोटे आदमी को देख कर
प्रमोद हंस रहा था मुझे पहचान कर
महानगर होते शहर में
ऐसा कभी ही होता है
कोई आपको पहचान रहा हो
ये सोच कर उदास हो जाता है मन
जिन मित्रों के साथ जमती थी महफ़िल
मिलते थे हर रोज़
घंटों खड़े रहते थे चौराहे पर
वे बचपन के मित्र जीवन से निकल कर
तस्वीरों में रह गए है
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शनिवार, 10 अक्टूबर 2009
कविता
-----------
नींद में स्त्री
----------------
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है वह स्त्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है चावल
कई हज़ार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
जूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं है वह स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिल्कुल अकेली
नींद में जागती रहती है वह स्त्री
--------------------------------------
-----------
नींद में स्त्री
----------------
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है वह स्त्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है चावल
कई हज़ार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
जूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं है वह स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिल्कुल अकेली
नींद में जागती रहती है वह स्त्री
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मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
कविता
---------
काम से लौटती स्त्रियाँ
----------------------------
जिस तरह हवाओं में
लौटती है खुशबू
पेडों पर लौटती है चिडियां
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
सारा दिन बदन पर
निगाहों की चुभन महसूस करती
फूहड़ और अश्लील चुटकुलों से ऊबी
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
उदास बच्चों के लिया टाफियाँ
उदासीन पतियों के लिए
सिगरेट के पैकेट खरीदती
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
काम पर गई स्त्रियों के साथ
लौटता है घरेलूपन
चूल्हों में लौटती है आग
दीयों में लौटती है रोशनी
बच्चों लौटती है हंसी
पुरुषों में लौटता है पौरुष
आकाश अपनी जगह
दिखाई देता है
पृथ्वी घूमती है
अपनी धुरी पर
जब शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
---------------------------------
---------
काम से लौटती स्त्रियाँ
----------------------------
जिस तरह हवाओं में
लौटती है खुशबू
पेडों पर लौटती है चिडियां
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
सारा दिन बदन पर
निगाहों की चुभन महसूस करती
फूहड़ और अश्लील चुटकुलों से ऊबी
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
उदास बच्चों के लिया टाफियाँ
उदासीन पतियों के लिए
सिगरेट के पैकेट खरीदती
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
काम पर गई स्त्रियों के साथ
लौटता है घरेलूपन
चूल्हों में लौटती है आग
दीयों में लौटती है रोशनी
बच्चों लौटती है हंसी
पुरुषों में लौटता है पौरुष
आकाश अपनी जगह
दिखाई देता है
पृथ्वी घूमती है
अपनी धुरी पर
जब शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
---------------------------------
मंगलवार, 29 सितंबर 2009
कविता
हत्यारे इतिहास नहीं पढ़ते
-------------------------------
हत्यारों की जेब में होता है देश का नक्शा
टुकडों टुकडों में , अलग अलग जेब में
अलग अलग भाषा में
हत्यारे नक्शा जोड़ते नहीं
हत्यारे सिलवाते रहते है नयी नयी जेबे
हत्यारों की नस्ल बहुत पुरानी है
हत्यारे पाए जाते है ,हर देश हर काल में
हत्यारों की सुरक्षा करते है हत्यारे
हत्यारों का कोई दुश्मन नहीं होता
हत्यारे मारे जाते है दोस्तों के हाथों
इतिहास में
स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है
हत्यारों की गौरव गाथा
हत्यारे रचते है इतिहास
हत्यारे इतिहास नहीं पढ़ते
-------------------------------
-------------------------------
हत्यारों की जेब में होता है देश का नक्शा
टुकडों टुकडों में , अलग अलग जेब में
अलग अलग भाषा में
हत्यारे नक्शा जोड़ते नहीं
हत्यारे सिलवाते रहते है नयी नयी जेबे
हत्यारों की नस्ल बहुत पुरानी है
हत्यारे पाए जाते है ,हर देश हर काल में
हत्यारों की सुरक्षा करते है हत्यारे
हत्यारों का कोई दुश्मन नहीं होता
हत्यारे मारे जाते है दोस्तों के हाथों
इतिहास में
स्वर्ण अक्षरों में लिखी गई है
हत्यारों की गौरव गाथा
हत्यारे रचते है इतिहास
हत्यारे इतिहास नहीं पढ़ते
-------------------------------
शनिवार, 26 सितंबर 2009
कविता
-------------------
-------------------
हत्यारों के सिर पर नहीं होते सींग
----------------------------------------
हत्यारे विदेशों से आयातित नहीं होते
न ही हत्यारों के सिर पर होते हैं सींग
हत्यारे नास्तिक नहीं होते
ईश्वर होता है
हत्यारों की मुट्ठी में बंद
धर्म ग्रन्थ होते है उनके हथियार
हर हत्या के बाद
उनकी आँखों में होते है आंसू
हत्यारे होते है दानवीर
हर हत्या के बाद लुटाते है स्वर्ण मुद्राएँ
हत्यारे वहां नहीं होते
जहाँ होती है हत्या
हत्यारे सदैव होते है हमारे आसपास
हत्यारे पहचाने नहीं जाते
हत्यारे हमारे सामने से
गुजर जाते है हाथ बांधें
हम नतमस्तक रहते हैं
हत्यारों के प्रति
-------------------------------
मंगलवार, 22 सितंबर 2009
कविता
-------------
हत्यारे नहीं देखते स्वप्न
--------------------------------
हत्यारों के चेहरों पर
होती है विनम्र हंसी
हत्यारे कभी हत्या नहीं करते
हत्यारे निर्भय हो कर
घूमते है शहर की सड़कों पर
हत्यारों के हाथों में नहीं होते हथियार
हत्यारों की कमीज़ के कालर
पर नहीं होता मैल
वे पहनते है उजले कपडे
उनके हाथ होते है बेदाग और साफ़
हत्यारों को रात भर
नींद नहीं आती
हत्यारे नहीं देखते स्वप्न
हत्यारों का ज़िक्र
होता है कविताओं में
हत्यारे कविता नहीं पढ़ते
-----------------------------------
-------------
हत्यारे नहीं देखते स्वप्न
--------------------------------
हत्यारों के चेहरों पर
होती है विनम्र हंसी
हत्यारे कभी हत्या नहीं करते
हत्यारे निर्भय हो कर
घूमते है शहर की सड़कों पर
हत्यारों के हाथों में नहीं होते हथियार
हत्यारों की कमीज़ के कालर
पर नहीं होता मैल
वे पहनते है उजले कपडे
उनके हाथ होते है बेदाग और साफ़
हत्यारों को रात भर
नींद नहीं आती
हत्यारे नहीं देखते स्वप्न
हत्यारों का ज़िक्र
होता है कविताओं में
हत्यारे कविता नहीं पढ़ते
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रविवार, 20 सितंबर 2009
कविता
--------------
खिलौना खरीदने से पहले
--------------------------------
बार बार मेरे हाथ
जाते है कभी भालू की पीठ पर
कभी बन्दर की नाक पर
और लौट आते है तेजी से
जैसे किसी ने गडा दिए हों नुकीले दांत
मैं कुछ झेंप कर
पूछने लगता हूँ दाम
एरोप्लेन या हेलिकोप्टर के
मेरे सामने
खिलौनों की अदभुत दुनिया है
सोती जागती गुडिया है
और ख्यालों में है
एक बच्चा -जिसने
फरमाइश की थी एक गन की
अपने दोनों हाथ पाकिट में
डाल कर दुकानदार की और देख
मुस्कराते हुए मुझे भी
जरूरत महसूस होती है
एक गन की
कोई भी खिलौना खरीदने से पहले
---------------------------------------------
--------------
खिलौना खरीदने से पहले
--------------------------------
बार बार मेरे हाथ
जाते है कभी भालू की पीठ पर
कभी बन्दर की नाक पर
और लौट आते है तेजी से
जैसे किसी ने गडा दिए हों नुकीले दांत
मैं कुछ झेंप कर
पूछने लगता हूँ दाम
एरोप्लेन या हेलिकोप्टर के
मेरे सामने
खिलौनों की अदभुत दुनिया है
सोती जागती गुडिया है
और ख्यालों में है
एक बच्चा -जिसने
फरमाइश की थी एक गन की
अपने दोनों हाथ पाकिट में
डाल कर दुकानदार की और देख
मुस्कराते हुए मुझे भी
जरूरत महसूस होती है
एक गन की
कोई भी खिलौना खरीदने से पहले
---------------------------------------------
सोमवार, 14 सितंबर 2009
बच्चा हँसता है स्वप्नों में
----------------------------------
खिड़की से आती धूप को
बंद कर लेना चाहता मुट्ठी में
पापा धूप पकड़ में क्यों नहीं आती
पापा हवा दिखाई क्यों नहीं देती
क्या पेड़ पर पत्तों के हिलने से आती हवा
बच्चे को गुस्सा आता है
पापा जवाब क्यों नहीं देते
बच्चा पैर पटकता चला जाता है
बाहर मैदान में
पापा को कुछ नहीं आता
बच्चा उड़ना चाहता है
चिडियों की तरह
बच्चा तैरना चाहता है
मछलियों की तरह
बच्चा पेड़ पर चढ़ना चाहता है
गिलहरी की तरह
बच्चा सुनता है कहानियां
कभी आश्चर्य से
फ़ैल जाती है उसकी आँखें
कभी भय से
सिमट आता है पापा के पास
कभी ख़ुशी से
पीटता है तालियाँ
बच्चा सवाली निगाहों से
देखता है पापा को
पर पूछता कुछ नहीं
खुद ही डूब जाता है सवालों में
और गढ़ता है जवाब
बच्चा सो जाता है
पापा से चिपट कर
----------------------------------
खिड़की से आती धूप को
बंद कर लेना चाहता मुट्ठी में
पापा धूप पकड़ में क्यों नहीं आती
पापा हवा दिखाई क्यों नहीं देती
क्या पेड़ पर पत्तों के हिलने से आती हवा
बच्चे को गुस्सा आता है
पापा जवाब क्यों नहीं देते
बच्चा पैर पटकता चला जाता है
बाहर मैदान में
पापा को कुछ नहीं आता
बच्चा उड़ना चाहता है
चिडियों की तरह
बच्चा तैरना चाहता है
मछलियों की तरह
बच्चा पेड़ पर चढ़ना चाहता है
गिलहरी की तरह
बच्चा सुनता है कहानियां
कभी आश्चर्य से
फ़ैल जाती है उसकी आँखें
कभी भय से
सिमट आता है पापा के पास
कभी ख़ुशी से
पीटता है तालियाँ
बच्चा सवाली निगाहों से
देखता है पापा को
पर पूछता कुछ नहीं
खुद ही डूब जाता है सवालों में
और गढ़ता है जवाब
बच्चा सो जाता है
पापा से चिपट कर
बच्चा हँसता स्वप्नों में
----------------------------------
मंगलवार, 8 सितंबर 2009
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
----------------------------
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
तब वे तलाशेगें
वे रास्ते जहाँ से
गुजरते थे दिन में कई कई बार
उनकी आँखों में उभर आयेंगे
एक साथ कई शहर
पीले,हरे,सफ़ेद मकान
और बदलते पडौसी
यात्रा दर यात्रा
बस की खिड़कियों से
पीछे छूटते मकान
खेत और गायें
बस में
मूंगफली बेचता लड़का
झगड़ता हुआ एक गंजा आदमी
जब बच्चे नहीं रहेगें
तब वे भूल चुके होंगे
स्कूल का रास्ता
लेकिन याद रहेगी
अंग्रेजी पढाने वाली टीचर
जो दिखती थी परियों जैसी
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
तब वे नहीं ढूंढ पाएंगे
अपने उन दोस्तों को
जिनके साथ खेलतेथे
झगडा होने पर
फाड़ दिया करते थे
एक दूसरे की कमीज़
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
तब उनके पास शेष रह जाएँगी स्मर्तियाँ
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----------------------------
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
तब वे तलाशेगें
वे रास्ते जहाँ से
गुजरते थे दिन में कई कई बार
उनकी आँखों में उभर आयेंगे
एक साथ कई शहर
पीले,हरे,सफ़ेद मकान
और बदलते पडौसी
यात्रा दर यात्रा
बस की खिड़कियों से
पीछे छूटते मकान
खेत और गायें
बस में
मूंगफली बेचता लड़का
झगड़ता हुआ एक गंजा आदमी
जब बच्चे नहीं रहेगें
तब वे भूल चुके होंगे
स्कूल का रास्ता
लेकिन याद रहेगी
अंग्रेजी पढाने वाली टीचर
जो दिखती थी परियों जैसी
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
तब वे नहीं ढूंढ पाएंगे
अपने उन दोस्तों को
जिनके साथ खेलतेथे
झगडा होने पर
फाड़ दिया करते थे
एक दूसरे की कमीज़
जब वे बच्चे नहीं रहेगें
तब उनके पास शेष रह जाएँगी स्मर्तियाँ
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बुधवार, 2 सितंबर 2009
कविता--- सोते हुए बच्चे
सोते हुए बच्चे
---------------------------
सोते हुए बच्चे
कितने अच्छे लगते है
मासूम और प्यारे प्यारे
सोते हुए बच्चे
मां को आश्वस्त करते है
सोते हुए बच्चे
दूध नही मांगते
खिलोने नही मांगते
मां चिंता मुक्त रहती है
सोते हुए बच्चों को
स्कूल नही भेजना पड़ता
किताबे नही खरीदनी पड़ती
अच्छे कपड़े नही पहनाने पड़ते
मां को बच्चों के सवालों के
जवाब नही खोजने पड़ते
सोते हुए बच्चे
सड़कों पर नही घूमते
आवारा नही होते
भीख नही मांगते
सोते हुए बच्चे
रोते नही है
स्वप्न देख
नींद में हँसते है
मां उनको प्यार से
दुलारती है
आँख मूँद
बच्चों को बढता हुआ देखती है
कितना आनंद देते है
मां को सोते हुए बच्चे
------------------------
शनिवार, 29 अगस्त 2009
कविता --- माँ के आने पर बच्चा
माँ के आने पर बच्चा
------------------------------------
रिक्शे की आवाज़ पहचान
अपने नन्हे नन्हे पैरों से
दरवाजे की और बढ़ता है बच्चा
दरवाजे पर ही गोद में
उठा लेती है माँ
दोनों के शरीर में
एक अव्यक्त तरंग उठती है
बच्चा छूता है
माँ के गाल
होंठ, नाक और बाल
फिर नन्हे नन्हे हाथों से
पीटता है माँ को
भरता है किलकारी
चिपट जाता है छाती से
दिन भर कैसे रहता है
डेढ़ साल का बच्चा
माँ से अलग
--------------------------
मंगलवार, 25 अगस्त 2009
कविता--जब बच्चे खेलते है
जब बच्चे खेलते है
-----------------------------
माएं चीखती रहती है
सारे दिन
बच्चें टंगे रहते छतो पर
दौड़ते रहते मैदानों में
उडाते रहते है पतंग
माएं बैठी रहती है
थाली में रोटी लिए
बच्चों को भूख नही लगती
माएं झींकती रहती है
बच्चे मिट्टी से सने हाथों से
मुंह में भर कर चावल हँसते रहते है
माँओं को चिंता है बच्चों की
बच्चे सोचते है
उस काले पिल्लै के बारे में
जिस की टांग दब गई थी
स्कूटर के नीचे
बच्चों को याद है
ढेर सारी कवितायें
बच्चे सुनना चाहते है
कहानियाँ और कहानियाँ
माएं आश्चर्य से भर उठती है
जब बच्चे खेलते है
घर घर का खेल
--------------------------------
-----------------------------
माएं चीखती रहती है
सारे दिन
बच्चें टंगे रहते छतो पर
दौड़ते रहते मैदानों में
उडाते रहते है पतंग
माएं बैठी रहती है
थाली में रोटी लिए
बच्चों को भूख नही लगती
माएं झींकती रहती है
बच्चे मिट्टी से सने हाथों से
मुंह में भर कर चावल हँसते रहते है
माँओं को चिंता है बच्चों की
बच्चे सोचते है
उस काले पिल्लै के बारे में
जिस की टांग दब गई थी
स्कूटर के नीचे
बच्चों को याद है
ढेर सारी कवितायें
बच्चे सुनना चाहते है
कहानियाँ और कहानियाँ
माएं आश्चर्य से भर उठती है
जब बच्चे खेलते है
घर घर का खेल
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शनिवार, 22 अगस्त 2009
कविता--बच्चे नही जानते
बच्चे नही जानते
------------------------------
दबे पाँव आना किसे कहते है
ये जानती है ---- बिल्ली
चौकन्नी - बिना आवाज किए
आपके पास आकर बैठ जाती है-- बिल्ली
बिल्ली धैर्य से प्रतीक्षा करती है
घर की स्त्री के चूक जाने की
झन्न -----न्न -----न्न ------न
कोई बरतन गिरता है रसोई घर में
स्त्री समझ जाती है
आज फिर जीत गई ------- बिल्ली
बच्चे खुश होते है
बिल्ली को देख कर
बच्चे नही जानते
उनका दूध पी जाती है-------बिल्ली
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शुक्रवार, 21 अगस्त 2009
कविता------बच्चे जानते है
बच्चे जानते है
----------------------------
बच्चे जानते है
घर का अर्थ
बच्चे जानते है
हाथी के दांत
दिखाने के और
खाने के और होते है
हम बहुत कुछ
भूलते जा रहे है
बच्चे दिखाते है
हमें चिडिया घर का रास्ता
बच्चे लेजाते है
हमें हमारे बचपन में
बच्चे जोड़ते है हमें
घर से
परिवार से
दुनिया से
प्रकृति से
बच्चे ले जाते है
हमें अपने साथ स्वप्न लोक में
हम बहुत कुछ
भूलते जा रहे है
बच्चे जानते है
प्रेम का अर्थ
बच्चे सिखाते है
हमें प्रेम करना
--------------
गुरुवार, 20 अगस्त 2009
कविता ------ जब बच्चे की खुलती है नींद
जब बच्चे की खुलती है नींद
----------------------------------------
जब बच्चे की खुलती है नींद
वह विस्मित हो कर
देखता है चारों और
धीरे धीरे पहचानता है
दीवारों को
देखता है खिड़की और दरवाजे
माँ को देख कर
पुलक उठता है उसका मन
हाथ पैर मारता है - बच्चा
माँ की गोद में
मचलता है बच्चा
दूध की तलाश में
चिपट जाता है छातियों से
बच्चे की रोने की
आवाज़ से जाग जाता है घर
बच्चा यहाँ से
शुरू करता है
जीवन संघर्ष
---------------
सोमवार, 17 अगस्त 2009
कविता ---- थोडी सी आदमियत
थोडी सी आदमीयत
------------------------------------------
आदमी बाज़ार से
ले आया फल और सब्जियां
दे आया थोडी सी खुशियाँ
आदमी बाज़ार से
ले आया घी और तेल
दे आया थोड़ा सा स्वास्थ्य
आदमी बाज़ार से
ले आया रंगीन कपडे
दे आया थोड़ा सा नंगापन
आदमी बाज़ार से
ले आया गेहूं चावल और दाल
दे आया थोडी सी भूख
आदमी बाज़ार से
ले आया दवाईयां
दे आया थोड़ा सा जीवन
आदमी बाज़ार से
कुछ नहीं लाया
बचा लाया थोडी सी आदमीयत
------------------
शनिवार, 8 अगस्त 2009
कविता --- दीवारों के पार कितनी धुप
दीवारों के पार कितनी धूप
--------------------------------------
गेहूं, चावल, दाल
बीनते छानते
उसकी उम्र के कितने दिन
चुरा लिए समय ने
उसे अहसास भी नहीं हुआ
घर की चार दीवारी में
दिन रात चक्कर काटती
वह अल्हड लड़की भूल गई
दुनिया गोल है
उसे आता है
रोटी को गोलाई देना
तवे पर फिरकनी की तरह घुमाना
पाँच बरस में
उसने सीखा है
कम बोलना
ज्यादा सुनना
मुस्कुराना और सहना
उसकी शिक्षा
उपयोगी सिद्ध हो रही है
सब्जी और नमक के अनुपात में
चाय और चीनी के मिश्रण में
वह नंगी अँगुलियों से उठाती है
गर्म ढूध का भगोना
तलती है पकोडियां
मेहमानों के लिए
उसे खुशी होती है
बच्चों के लिए पराठा सेंकते हुए
कपडों को धूप देते हुए
उसने कभी नही सोचा
दीवारों के पार
कितनी धूप
बाकी है अभी
--------------
--------------------------------------
गेहूं, चावल, दाल
बीनते छानते
उसकी उम्र के कितने दिन
चुरा लिए समय ने
उसे अहसास भी नहीं हुआ
घर की चार दीवारी में
दिन रात चक्कर काटती
वह अल्हड लड़की भूल गई
दुनिया गोल है
उसे आता है
रोटी को गोलाई देना
तवे पर फिरकनी की तरह घुमाना
पाँच बरस में
उसने सीखा है
कम बोलना
ज्यादा सुनना
मुस्कुराना और सहना
उसकी शिक्षा
उपयोगी सिद्ध हो रही है
सब्जी और नमक के अनुपात में
चाय और चीनी के मिश्रण में
वह नंगी अँगुलियों से उठाती है
गर्म ढूध का भगोना
तलती है पकोडियां
मेहमानों के लिए
उसे खुशी होती है
बच्चों के लिए पराठा सेंकते हुए
कपडों को धूप देते हुए
उसने कभी नही सोचा
दीवारों के पार
कितनी धूप
बाकी है अभी
--------------
शुक्रवार, 24 जुलाई 2009
कविता
उस लड़की की हँसी
-------------------------------
उस खिलखिलाती लड़की की
तस्वीर कैद करलो
अपनी आंखों के कैमरे में
उस लड़की अल्हड़ता
उस लड़की की हँसी
उस लड़की का शर्माना
कैद करलो अपनी यादों में
कुछ दिनों के बाद
जब देखोगे किसी गृहणी को
कपडे धोते हुए , आटा गूंथते हुए
तब उसकी आंखों में , कुछ तलाश करोगे तुम
फिर कभी जब तुम देखोगे
किसी उदास औरत को
बाज़ार से सब्जी लाते हुए
दवाईयों की दुकान पर खड़े
अँगुलियों पर हिसाब लगाते हुए
तब तुम पहचान भी
नही पाओगे यह वही लड़की है
जिस की हँसी
आज भी गूंज रही है
तुम्हारे ख्याल में
----------------
शनिवार, 18 जुलाई 2009
आधी सदी के सफर में
आधी सदी के सफर में
-------------------------------
आधी सदी के सफर में
हम रहे साथ साथ
इस शहर की कितनी गलियों में
कितनी बार घूमते रहे पैदल
सडकों पर दौड़ाते रहे साईकिल
चालीस मिनट से वह खड़ा था
सड़क के दायीं ओर
मै खड़ा था बायीं ओर
हम दोनों के बीच साठ फीट की दूरी थी
कभी वह मेरी दिशा में
कभी मै उसकी दिशा में
बढ़ने का प्रयास करते रहे
कई बार सड़क के बीचों बीच पहुँच गए
फिर लौट आए अपनी अपनी दिशाओं में
हमारी नजदीकियों के बीच
एक सैलाब था स्कूटर-कार
ऑटो ओर मिनी बसों का
भय था हादसों का
उम्र का तकाजा था
बीत चुकी थी आधी सदी
हम फिर बढे
बचते हुए वाहनों से
एक दूसरे की दिशा में
सोचा इतने बूढे भी नहीं है अभी
आख़िर मैंने उसे
खींच ही लिया हाथ पकड़ कर
बहुत देर तक हम
यूँ ही खडे रहे निशब्द
एक दूसरे का हाथ थामे
जैसे मिले हों पूरी सदी के बाद
-------------
बुधवार, 15 जुलाई 2009
चापलूस
चापलूस
----------------
चापलूसी करना एक कला है
मूर्खों के वश की बात नहीं
चतुर और चालाक ही
कर सकते है चापलूसी
चापलूस होते है शिष्ट और सभ्य
अभद्रता से पेश नहीं आते
चापलूस जानते है
कब गधे को बाप कहना चाहिए
कब बाप को गधा
उन्हें मालूम है गधे को
गधा कहना भी जरूरी है
अक्सर प्रशंसाकामी
घिरे रहते है चापलूसों से
कहते है उन्हें चापलूसी पसंद नहीं
चापलूस प्रभावित होते है उनके सिध्दान्त से
कलात्मकता से करते है प्रशंसा
प्रशंसाकामी गले से लगा लेते है चापलूस को
चापलूस बहुत कम दूरी रखते है
सच और झूठ में
एक झीनी सी चादर रखते है
अंधेरे और उजाले के बीच
रोने की तरह हँसते है
हंसने की तरह रोते है
उनकी एक आँख में होते है
खुशी के आंसू
दूसरी आँख में दुख के
हर युग में हुए है चापलूस
यदि चापलूस नहीं होते
बहुत से महान , महान नहीं होते
चापलूस किसी युग में असफल नहीं होते
--------------------------
----------------
चापलूसी करना एक कला है
मूर्खों के वश की बात नहीं
चतुर और चालाक ही
कर सकते है चापलूसी
चापलूस होते है शिष्ट और सभ्य
अभद्रता से पेश नहीं आते
चापलूस जानते है
कब गधे को बाप कहना चाहिए
कब बाप को गधा
उन्हें मालूम है गधे को
गधा कहना भी जरूरी है
अक्सर प्रशंसाकामी
घिरे रहते है चापलूसों से
कहते है उन्हें चापलूसी पसंद नहीं
चापलूस प्रभावित होते है उनके सिध्दान्त से
कलात्मकता से करते है प्रशंसा
प्रशंसाकामी गले से लगा लेते है चापलूस को
चापलूस बहुत कम दूरी रखते है
सच और झूठ में
एक झीनी सी चादर रखते है
अंधेरे और उजाले के बीच
रोने की तरह हँसते है
हंसने की तरह रोते है
उनकी एक आँख में होते है
खुशी के आंसू
दूसरी आँख में दुख के
हर युग में हुए है चापलूस
यदि चापलूस नहीं होते
बहुत से महान , महान नहीं होते
चापलूस किसी युग में असफल नहीं होते
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शनिवार, 11 जुलाई 2009
एक ही नगर में
एक ही नगर में पॉँच कवि
--------------------------
एक ही नगर में रहते है पॉँच कवि
खूब प्रकाशित होते है
साहित्यिक पत्रिकाओं में
दूसरे नगर से देखने पर
समृद्ध लगता है ये नगर
एक ही नगर में रहते हुए
एक कवि को दूसरे कवि की ख़बर नहीं है
पहला कवि नहीं जानता
दूसरे कवि ने बदल लिया है मकान
दूसरा कवि नहीं जानता
तीसरा कवि भर्ती है अस्पताल में
चौथा कवि किसी अन्य को कवि नहीं मानता
पांचवा कवि अब भी
कभी कभी जाता है कॉफी हाउस
पांचों कवि मिलते है अपने ही नगर में
किसी साहित्यिक समारोह में
जिसमे मुख्य अतिथि होते है
राजधानी से आए नामवर आलोचक
किसी काव्य संग्रह का लोकार्पण
करने आए साहित्यिक पत्रिका के संपादक
कोई चर्चित विवादित लेखक
अपने ही नगर में पांचो कवि
इस तरह मिलते है गले
जैसे मिले हों वर्षों बाद
आए हों दूसरे नगर से
--------------
--------------------------
एक ही नगर में रहते है पॉँच कवि
खूब प्रकाशित होते है
साहित्यिक पत्रिकाओं में
दूसरे नगर से देखने पर
समृद्ध लगता है ये नगर
एक ही नगर में रहते हुए
एक कवि को दूसरे कवि की ख़बर नहीं है
पहला कवि नहीं जानता
दूसरे कवि ने बदल लिया है मकान
दूसरा कवि नहीं जानता
तीसरा कवि भर्ती है अस्पताल में
चौथा कवि किसी अन्य को कवि नहीं मानता
पांचवा कवि अब भी
कभी कभी जाता है कॉफी हाउस
पांचों कवि मिलते है अपने ही नगर में
किसी साहित्यिक समारोह में
जिसमे मुख्य अतिथि होते है
राजधानी से आए नामवर आलोचक
किसी काव्य संग्रह का लोकार्पण
करने आए साहित्यिक पत्रिका के संपादक
कोई चर्चित विवादित लेखक
अपने ही नगर में पांचो कवि
इस तरह मिलते है गले
जैसे मिले हों वर्षों बाद
आए हों दूसरे नगर से
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मंगलवार, 7 जुलाई 2009
मोबाइल
मोबाइल
-----------------------
माचिस की दो खाली डिब्बियों के बीच
एक लंबा धागा बाँध कर
दो छोर पर खड़े हो जाते है दो बच्चे
पहले छोर से
बच्चा माचिस की डिब्बी को
कान से सटाकर कहता है - हलो
दूसरे छोर से दूसरा बच्चा
उस ही अंदाज में बोलता है
हाँ - कौन बोल रहा है
फिर बहुत देर तक चलता रहता है संवाद
दोनों बच्चे महसूस करते है कि
वास्तव में उनको आवाज
एक दूसरे तक बीच के धागे के
माध्यम से ही आ रही है
संवाद करते करते दोनों बच्चे
बड़े होजाते है
दोनों बच्चों कीजेब में
माचिस की खाली डिब्बियों की जगह
रखें है मोबाइल
आज भी दोनों छोरों से
देर तक चलता रहता है संवाद
किंतु अब दोनों छोरों के
बीच का धागा टूट गया है
---------------------------
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माचिस की दो खाली डिब्बियों के बीच
एक लंबा धागा बाँध कर
दो छोर पर खड़े हो जाते है दो बच्चे
पहले छोर से
बच्चा माचिस की डिब्बी को
कान से सटाकर कहता है - हलो
दूसरे छोर से दूसरा बच्चा
उस ही अंदाज में बोलता है
हाँ - कौन बोल रहा है
फिर बहुत देर तक चलता रहता है संवाद
दोनों बच्चे महसूस करते है कि
वास्तव में उनको आवाज
एक दूसरे तक बीच के धागे के
माध्यम से ही आ रही है
संवाद करते करते दोनों बच्चे
बड़े होजाते है
दोनों बच्चों कीजेब में
माचिस की खाली डिब्बियों की जगह
रखें है मोबाइल
आज भी दोनों छोरों से
देर तक चलता रहता है संवाद
किंतु अब दोनों छोरों के
बीच का धागा टूट गया है
---------------------------
शनिवार, 4 जुलाई 2009
गर्मियों की रातों में
गर्मियों की रातों में
------------------------
इन दिनों कम ही नज़र
उठती है आकाश की ओर
कई वर्ष हुए मैंने
शुभ्र - निरभ्र तारों से आच्छादित
आकाश नहीं देखा
नही देखा मैंने चाँद को घटते बढ़ते
पूर्ण चंद्रमा में
चरखा कातती बुढिया को नहीं देखा
अब रात को नींद आने से पहले
कमरें की छत पर
चलता पंखा दिखाई देता है
या- सामने की दीवार पर टंगी
टिक-टिक करती घड़ी
गर्मियों की वे राते
जब मै सोता था छत पर
कितनी अलग थी इन रातों से
सूर्यास्त होने पर
पानी की भरी बाल्टियों से
छिडकाव करने के बाद
चल- पहल बढ़ जाती थी छत पर
अँधेरा बढ़ने के साथ
कम होता जाता था शोर
बरगद के पेड़ के पीछे से
उठने लगता चाँद
बिस्तर पर लेटे -लेटे
एक टक देखता रहता
चाँद और चाँद में छुपी आकृतियाँ
तारों से भरे नीले आकाश में
उत्तर दिशा में संगति बिठाता
सप्तरिशी मंडल की
आसपास ही सबसे तेज चमकते
ध्रुव तारे को खोजते हुए
कब नींद आजाती मालूम नहीं
गर्मियों की रातों में छत पर सोते हुए
------------------------------------
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इन दिनों कम ही नज़र
उठती है आकाश की ओर
कई वर्ष हुए मैंने
शुभ्र - निरभ्र तारों से आच्छादित
आकाश नहीं देखा
नही देखा मैंने चाँद को घटते बढ़ते
पूर्ण चंद्रमा में
चरखा कातती बुढिया को नहीं देखा
अब रात को नींद आने से पहले
कमरें की छत पर
चलता पंखा दिखाई देता है
या- सामने की दीवार पर टंगी
टिक-टिक करती घड़ी
गर्मियों की वे राते
जब मै सोता था छत पर
कितनी अलग थी इन रातों से
सूर्यास्त होने पर
पानी की भरी बाल्टियों से
छिडकाव करने के बाद
चल- पहल बढ़ जाती थी छत पर
अँधेरा बढ़ने के साथ
कम होता जाता था शोर
बरगद के पेड़ के पीछे से
उठने लगता चाँद
बिस्तर पर लेटे -लेटे
एक टक देखता रहता
चाँद और चाँद में छुपी आकृतियाँ
तारों से भरे नीले आकाश में
उत्तर दिशा में संगति बिठाता
सप्तरिशी मंडल की
आसपास ही सबसे तेज चमकते
ध्रुव तारे को खोजते हुए
कब नींद आजाती मालूम नहीं
गर्मियों की रातों में छत पर सोते हुए
------------------------------------
गुरुवार, 2 जुलाई 2009
चिड़ियों से संवाद करती स्त्री
चिडियों से संवाद करती स्त्री
--------------------------------------------
अपने घर के छोटे से बगीचे में
जहाँ लगा रखे थे कुछ पेड़ पौधे
बाँध रखा था एक परिंडा
वह स्त्री सूरज निकलने से पहले
परिवार की नींद खुलने पहले
भोर में चिडियों से बात चीत करती
सुनाती अपने , सुनती उनके हाल
तिनकों की तलाश में जाने से पहले
रंगबिरंगी चिडियां
उस स्त्री के इर्द गिर्द फुदकती रहती
स्त्री व्दारा आटेकी छोटी छोटी
बिखराई गई गोलियों को अपनी
चोंच में दबाती हुई चिडियां
कभी स्त्री के कंधों पर चढ़ जाती
कभी बैठ जाती सिर पर
उस प्रोढ़ स्त्री ने
निकाल रखे थे चिडियों के नाम
सोनपंखी , नीलकंठी ,जैसे नामों के साथ
कालीकलूटी जैसा नाम भी था
वह स्त्री कभी डांट भी देती थी चिडियों को
नाराज़ भी होजाती थी उनसे
थोडी ही देर में उनके मधुर गान पर
रीझ भी जाती थी
उस स्त्री ने देखे थे कई पतझर
चिडियों की व्यथा समझती थी
चिडियों से पूछती तुम खुश तो हो
चिडियों को अपने दुख भी बताती
चिडियां सांत्वना देती उस स्त्री को
स्त्री समझती थी चिडियों की भाषा
चिडियां समझती थी
स्त्री का दुख सदियों से
काम पर जाने से पहले
चिडियां अनुमति मांगती स्त्री से
स्त्री फुर्र --- फुर्र --- कहती उडा देती चिडियों को
एक और दिन में डूब जाने के लिए
एक और रात में समा जाने के लिए
चिडियां उड़ जाती
ओझल हो जाती स्त्री की आंखों से
कल फिर आने के लिए
------------------
--------------------------------------------
अपने घर के छोटे से बगीचे में
जहाँ लगा रखे थे कुछ पेड़ पौधे
बाँध रखा था एक परिंडा
वह स्त्री सूरज निकलने से पहले
परिवार की नींद खुलने पहले
भोर में चिडियों से बात चीत करती
सुनाती अपने , सुनती उनके हाल
तिनकों की तलाश में जाने से पहले
रंगबिरंगी चिडियां
उस स्त्री के इर्द गिर्द फुदकती रहती
स्त्री व्दारा आटेकी छोटी छोटी
बिखराई गई गोलियों को अपनी
चोंच में दबाती हुई चिडियां
कभी स्त्री के कंधों पर चढ़ जाती
कभी बैठ जाती सिर पर
उस प्रोढ़ स्त्री ने
निकाल रखे थे चिडियों के नाम
सोनपंखी , नीलकंठी ,जैसे नामों के साथ
कालीकलूटी जैसा नाम भी था
वह स्त्री कभी डांट भी देती थी चिडियों को
नाराज़ भी होजाती थी उनसे
थोडी ही देर में उनके मधुर गान पर
रीझ भी जाती थी
उस स्त्री ने देखे थे कई पतझर
चिडियों की व्यथा समझती थी
चिडियों से पूछती तुम खुश तो हो
चिडियों को अपने दुख भी बताती
चिडियां सांत्वना देती उस स्त्री को
स्त्री समझती थी चिडियों की भाषा
चिडियां समझती थी
स्त्री का दुख सदियों से
काम पर जाने से पहले
चिडियां अनुमति मांगती स्त्री से
स्त्री फुर्र --- फुर्र --- कहती उडा देती चिडियों को
एक और दिन में डूब जाने के लिए
एक और रात में समा जाने के लिए
चिडियां उड़ जाती
ओझल हो जाती स्त्री की आंखों से
कल फिर आने के लिए
------------------
शनिवार, 27 जून 2009
डायन
डायन
उस बुढिया के पास
जमीन का एक टुकडा शेष था
शेष था थोड़ा सा जीवन
गाँव गुम हो रहा था
बाज़ार पहुँच रहा था गाँव में
अधिकांश ग्रामवासियों ने
बेच दी अपनी जमीन
खेती छोड़ कर शेयर मार्केट में
धन लगा रहे थे
बिना मेहनत किए सम्पन्न कहला रहे थे
फ्रीज़ , वाशिंग मशीन, टी.वी ,
मोटर साइकल , और मोबाइल
जीवन का आनंद दिला रहे थे
भू माफिया की नज़र में
खटक रही थी बुढिया और
बुढिया की दो बीघा जमीन
मौके की जमीन थी ,लाखों की कीमत
बुढिया को था जमीन से प्रेम
जमीन से जुड़ी थी कई स्मृतियाँ
बुढिया गाँव भर में लोकप्रिय थी
बच्चों के बीमार होने पर
उतारती थी नज़र , करती थी झाड़ फूंक
एक दिन एक बीमार बच्चे की मौत हो गई
जिसकी नज़र उतारी थी बुढिया ने
भनक लगते ही एकत्रित हो गए
भू माफिया के लोग
जो थे अवसर की तलाश में
काना फूसी के बाद मच गया शोर
बुढिया डायन है ,खा गई बच्चे को
बुढिया का मुंह काला कर
उतार कर सारे वस्त्र
नग्न अवस्था में घुमाया गाँव में
पत्थर भी फेंके गए उस पर
जो मां थी सारे गाँव की
खड़ी थी मादरजात बेटों के सामने
इस से पहले की
पुलिस पहुँचती घटनास्थल पर
लज्जा से गडी बुढिया ने
झलांग लगा दी अंधी बावडी में
जल में समां गई उसकी लज्जा
अग्नि में जल गई उसकी देह
पर मुक्त नहीं हुई उसकी आत्मा
डायन होने के आरोप से
एक वृद्ध स्त्री की नग्न छाया
अब भी दिखाई देती है
साँझ ढले , अँधेरा उतरने पर
दो बीघा जमींन पर बने
मकानों के आसपास
---------
उस बुढिया के पास
जमीन का एक टुकडा शेष था
शेष था थोड़ा सा जीवन
गाँव गुम हो रहा था
बाज़ार पहुँच रहा था गाँव में
अधिकांश ग्रामवासियों ने
बेच दी अपनी जमीन
खेती छोड़ कर शेयर मार्केट में
धन लगा रहे थे
बिना मेहनत किए सम्पन्न कहला रहे थे
फ्रीज़ , वाशिंग मशीन, टी.वी ,
मोटर साइकल , और मोबाइल
जीवन का आनंद दिला रहे थे
भू माफिया की नज़र में
खटक रही थी बुढिया और
बुढिया की दो बीघा जमीन
मौके की जमीन थी ,लाखों की कीमत
बुढिया को था जमीन से प्रेम
जमीन से जुड़ी थी कई स्मृतियाँ
बुढिया गाँव भर में लोकप्रिय थी
बच्चों के बीमार होने पर
उतारती थी नज़र , करती थी झाड़ फूंक
एक दिन एक बीमार बच्चे की मौत हो गई
जिसकी नज़र उतारी थी बुढिया ने
भनक लगते ही एकत्रित हो गए
भू माफिया के लोग
जो थे अवसर की तलाश में
काना फूसी के बाद मच गया शोर
बुढिया डायन है ,खा गई बच्चे को
बुढिया का मुंह काला कर
उतार कर सारे वस्त्र
नग्न अवस्था में घुमाया गाँव में
पत्थर भी फेंके गए उस पर
जो मां थी सारे गाँव की
खड़ी थी मादरजात बेटों के सामने
इस से पहले की
पुलिस पहुँचती घटनास्थल पर
लज्जा से गडी बुढिया ने
झलांग लगा दी अंधी बावडी में
जल में समां गई उसकी लज्जा
अग्नि में जल गई उसकी देह
पर मुक्त नहीं हुई उसकी आत्मा
डायन होने के आरोप से
एक वृद्ध स्त्री की नग्न छाया
अब भी दिखाई देती है
साँझ ढले , अँधेरा उतरने पर
दो बीघा जमींन पर बने
मकानों के आसपास
---------
लकड़ी का संदूक
लकड़ी का संदूक
----------------------
इतना बड़ा लकड़ी का संदूक
पूरे पैर फैला कर
जिस पर सो सकता था बचपन
देख सकता था स्वप्न
एक बूढी औरत
जो उठ कर चल नहीं सकती थी
घिसट घिसट कर
बार बार आती है संदूक के पास
संदूक से उछलती है कुछ पोटलियाँ
पोटलियों में भरा है तिलस्म
एक अजीब सी गंध देते कपड़े
घिसे हुए बर्तन
गंगा जल की शीशी
न पहचान में आने वाला
पुरी के जगन्नाथ का चित्र
कई बार खुलती बंद होती पोटलियाँ
किवाडों की दरारों से
चुपचाप झांकता एक बच्चासोचता है
इस ही संदूक में है
कहीं न कहीं अल्लाद्दीन का चिराग
खुल जा सिम --सिम
बंद हो जा सिम --
संदूक में लग गई है दीमक
चाट गई सारा तिलस्म
एक झूठी कहानी साबित हुआ
अल्लाद्दीन का चिराग
अब कोई बुढिया
घिसटती हुई नहीं आती संदूक तक
बचपन आज भी
संदूक के किसी कोने में दबा है
लेकिन अब संदूक पर पूरे पैर नहीं फैलते
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इतना बड़ा लकड़ी का संदूक
पूरे पैर फैला कर
जिस पर सो सकता था बचपन
देख सकता था स्वप्न
एक बूढी औरत
जो उठ कर चल नहीं सकती थी
घिसट घिसट कर
बार बार आती है संदूक के पास
संदूक से उछलती है कुछ पोटलियाँ
पोटलियों में भरा है तिलस्म
एक अजीब सी गंध देते कपड़े
घिसे हुए बर्तन
गंगा जल की शीशी
न पहचान में आने वाला
पुरी के जगन्नाथ का चित्र
कई बार खुलती बंद होती पोटलियाँ
किवाडों की दरारों से
चुपचाप झांकता एक बच्चासोचता है
इस ही संदूक में है
कहीं न कहीं अल्लाद्दीन का चिराग
खुल जा सिम --सिम
बंद हो जा सिम --
संदूक में लग गई है दीमक
चाट गई सारा तिलस्म
एक झूठी कहानी साबित हुआ
अल्लाद्दीन का चिराग
अब कोई बुढिया
घिसटती हुई नहीं आती संदूक तक
बचपन आज भी
संदूक के किसी कोने में दबा है
लेकिन अब संदूक पर पूरे पैर नहीं फैलते
गुरुवार, 25 जून 2009
खबर
ख़बर
--------------
रोशनी के अंधेरे में
खो गए थे वे लोग
जो पहले से भी कहीं
अधिक अंधेरे में जी रहे थे
नष्ट कर दिए गए थे
उनके संगठन और कारखाने
दबा दी गई थी उनकी आवाज़
अब देश काकोई भी नेता
गरीबों के पक्ष में
एक नारा भी नहीं दे रहा था
ऐसे में एक मजदूर स्त्री ने
पति की दुर्घटना में मृत्यु के बाद
स्वीकार कर ली थी पराजय
जो उसकी नहीं
देश की पराजय थी
उसके पास अन्न खरीदने लिए
फूटी कौडी भी नहीं थी
कहाँ से एकत्रितकिए होंगें पैसे
बच्चों को कैसेदिला
होगा विश्वास
जो दलिया वे खा रहें है
उसमे जीवन नहीं विष है
निश्चिंत हो जाने के बाद
कि उन रूखे सूखे शरीरों में लिया
धड़कन भी शेष नहीं है
स्वयं ने भी
पी लिया होगा विष
संघर्ष तो किया होगा मृत्यु वरण से पहले
आंसू तो नहीं सूख गए होंगें
बच्चों को विष देने से पहले
राजनीती ,फ़िल्म,क्रिकेट
बाज़ार के समाचारों ,विज्ञापनों और
अभिनेत्रियों कि कामुक तस्वीरों से
बच्ची थोडी सी जगह में समाचार पत्रों था
तीन पंक्तियों में ये समाचार
एक मजदूर स्त्री ने
गरीबी से तंग आकर
तीन बच्चों सहित पी लिया विष
आपने भी पढ़ीतो होगी ये ख़बर
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रोशनी के अंधेरे में
खो गए थे वे लोग
जो पहले से भी कहीं
अधिक अंधेरे में जी रहे थे
नष्ट कर दिए गए थे
उनके संगठन और कारखाने
दबा दी गई थी उनकी आवाज़
अब देश काकोई भी नेता
गरीबों के पक्ष में
एक नारा भी नहीं दे रहा था
ऐसे में एक मजदूर स्त्री ने
पति की दुर्घटना में मृत्यु के बाद
स्वीकार कर ली थी पराजय
जो उसकी नहीं
देश की पराजय थी
उसके पास अन्न खरीदने लिए
फूटी कौडी भी नहीं थी
कहाँ से एकत्रितकिए होंगें पैसे
बच्चों को कैसेदिला
होगा विश्वास
जो दलिया वे खा रहें है
उसमे जीवन नहीं विष है
निश्चिंत हो जाने के बाद
कि उन रूखे सूखे शरीरों में लिया
धड़कन भी शेष नहीं है
स्वयं ने भी
पी लिया होगा विष
संघर्ष तो किया होगा मृत्यु वरण से पहले
आंसू तो नहीं सूख गए होंगें
बच्चों को विष देने से पहले
राजनीती ,फ़िल्म,क्रिकेट
बाज़ार के समाचारों ,विज्ञापनों और
अभिनेत्रियों कि कामुक तस्वीरों से
बच्ची थोडी सी जगह में समाचार पत्रों था
तीन पंक्तियों में ये समाचार
एक मजदूर स्त्री ने
गरीबी से तंग आकर
तीन बच्चों सहित पी लिया विष
आपने भी पढ़ीतो होगी ये ख़बर
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बुधवार, 24 जून 2009
बचे हुए दिन
बचे हुए दिन
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कितने दिन बचेगें
बचे हुए दिन
एक दिन बीत ही जायेंगे
बचे हुए दिनों में
करने को है अनेक काम
लिखना चाहता हूँ
ढेर सारी कवितायें
अभी आंखों में बचे है
कई स्वप्न
समय कम है
ताबीर के लिए
अभी जानाहै दूर
बची है थकान
समय कम है
ठहर जाने के लिए
तेजी से बीतते हुए दिन
जल्दी ही फिसल जायेगें
हथेलियों के बीच से
कितने दिन बचेगें
बचे हुए दिन
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कितने दिन बचेगें
बचे हुए दिन
एक दिन बीत ही जायेंगे
बचे हुए दिनों में
करने को है अनेक काम
लिखना चाहता हूँ
ढेर सारी कवितायें
अभी आंखों में बचे है
कई स्वप्न
समय कम है
ताबीर के लिए
अभी जानाहै दूर
बची है थकान
समय कम है
ठहर जाने के लिए
तेजी से बीतते हुए दिन
जल्दी ही फिसल जायेगें
हथेलियों के बीच से
कितने दिन बचेगें
बचे हुए दिन
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रविवार, 21 जून 2009
छवि
छवि
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जैसा दिखना चाहता हूँ मैं
वैसा हूँ नहीं मैं
जैसा हूँ वैसा दीखता नहीं
जैसा दिखना चाहता हूँ
वैसा भी नहीं दीखता मैं
बहुत कोशिश की अपनी छवि बनाने की
वेशभूषा भीं बदली
बालों का स्टाइल भी बदलता रहा बार बार
जैसा दिखना चाहता था ,वैसा नहीं दिखा मैं
लोगों ने नहीं दखा मुझे मेरी नज़र से
लोगों ने देखा मुझे अपनी नज़र से
मैं जैसा अन्दर से हूँ ,वैसा बाहरसे नहीं हूँ
जैसा बाहर से हूँ , वसा दिखना नहीं चाहता
वैसा भी नहीं दिखना
जैसा अन्दर से हूँ मैं
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जैसा दिखना चाहता हूँ मैं
वैसा हूँ नहीं मैं
जैसा हूँ वैसा दीखता नहीं
जैसा दिखना चाहता हूँ
वैसा भी नहीं दीखता मैं
बहुत कोशिश की अपनी छवि बनाने की
वेशभूषा भीं बदली
बालों का स्टाइल भी बदलता रहा बार बार
जैसा दिखना चाहता था ,वैसा नहीं दिखा मैं
लोगों ने नहीं दखा मुझे मेरी नज़र से
लोगों ने देखा मुझे अपनी नज़र से
मैं जैसा अन्दर से हूँ ,वैसा बाहरसे नहीं हूँ
जैसा बाहर से हूँ , वसा दिखना नहीं चाहता
वैसा भी नहीं दिखना
जैसा अन्दर से हूँ मैं
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