डायन
उस बुढिया के पास
जमीन का एक टुकडा शेष था
शेष था थोड़ा सा जीवन
गाँव गुम हो रहा था
बाज़ार पहुँच रहा था गाँव में
अधिकांश ग्रामवासियों ने
बेच दी अपनी जमीन
खेती छोड़ कर शेयर मार्केट में
धन लगा रहे थे
बिना मेहनत किए सम्पन्न कहला रहे थे
फ्रीज़ , वाशिंग मशीन, टी.वी ,
मोटर साइकल , और मोबाइल
जीवन का आनंद दिला रहे थे
भू माफिया की नज़र में
खटक रही थी बुढिया और
बुढिया की दो बीघा जमीन
मौके की जमीन थी ,लाखों की कीमत
बुढिया को था जमीन से प्रेम
जमीन से जुड़ी थी कई स्मृतियाँ
बुढिया गाँव भर में लोकप्रिय थी
बच्चों के बीमार होने पर
उतारती थी नज़र , करती थी झाड़ फूंक
एक दिन एक बीमार बच्चे की मौत हो गई
जिसकी नज़र उतारी थी बुढिया ने
भनक लगते ही एकत्रित हो गए
भू माफिया के लोग
जो थे अवसर की तलाश में
काना फूसी के बाद मच गया शोर
बुढिया डायन है ,खा गई बच्चे को
बुढिया का मुंह काला कर
उतार कर सारे वस्त्र
नग्न अवस्था में घुमाया गाँव में
पत्थर भी फेंके गए उस पर
जो मां थी सारे गाँव की
खड़ी थी मादरजात बेटों के सामने
इस से पहले की
पुलिस पहुँचती घटनास्थल पर
लज्जा से गडी बुढिया ने
झलांग लगा दी अंधी बावडी में
जल में समां गई उसकी लज्जा
अग्नि में जल गई उसकी देह
पर मुक्त नहीं हुई उसकी आत्मा
डायन होने के आरोप से
एक वृद्ध स्त्री की नग्न छाया
अब भी दिखाई देती है
साँझ ढले , अँधेरा उतरने पर
दो बीघा जमींन पर बने
मकानों के आसपास
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शनिवार, 27 जून 2009
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आह ! इमोशनल कर दिया इस कविता ने !
जवाब देंहटाएंbahut hi gahare me chhipe hai arth .................bahut hi sundar rachana ................dhero badhaeeya
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व बढिया सामयिक रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंdaarun
जवाब देंहटाएंatyant daarun
marm sparshi kavita...........
bahut marmsparsi rachna . jitni tareef kare kam hai . badhai ho !
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