कविता
---------
काम से लौटती स्त्रियाँ
----------------------------
जिस तरह हवाओं में
लौटती है खुशबू
पेडों पर लौटती है चिडियां
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
सारा दिन बदन पर
निगाहों की चुभन महसूस करती
फूहड़ और अश्लील चुटकुलों से ऊबी
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
उदास बच्चों के लिया टाफियाँ
उदासीन पतियों के लिए
सिगरेट के पैकेट खरीदती
शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
काम पर गई स्त्रियों के साथ
लौटता है घरेलूपन
चूल्हों में लौटती है आग
दीयों में लौटती है रोशनी
बच्चों लौटती है हंसी
पुरुषों में लौटता है पौरुष
आकाश अपनी जगह
दिखाई देता है
पृथ्वी घूमती है
अपनी धुरी पर
जब शाम को घरों को
लौटती है काम पर गई स्त्रियाँ
---------------------------------
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
काम पर गई स्त्रियों के साथ
जवाब देंहटाएंलौटता है घरेलूपन
वाकई स्त्रियो के लौटने से घरेलूपन लौटता है.
अन्यत्र आपने क्या खूब लिखा है :
काम पर गई स्त्रियों के साथ
पुरुषों में लौटता है पौरुष
स्त्रियो के प्रति इस मार्मिक सोच के लिये साधुवाद
वाह बहुत ही खुब्सूरत ख्याल को आपने आपनी कविता का जमा पहनाया है ...........बिल्कुल सच है !!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंमन को भिगोती मार्मिक कविता
जवाब देंहटाएंकाम पर गई स्त्रियों के साथ
जवाब देंहटाएंलौटता है घरेलूपन
चूल्हों में लौटती है आग
दीयों में लौटती है रोशनी
बच्चों लौटती है हंसी
पुरुषों में लौटता है पौरुष
------------
और घर को लौटती है कविता...
badhiya kavita.
जवाब देंहटाएं