पितृ पक्ष
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उनको नहीं देखा मैंने
उनकी कोई स्मृति भी नहीं
बहुत पहले ही चले गए थे
मेरे जन्म के कुछ ही बाद
मेरे बचपन से भी पहले
फिर भी एक अहसास
न होने का,एक अमूर्त
आकृति मंडराती रही मेरे आस पास
दोनों हाथों की अंजुरी बना कर
पृथ्वी पर जल छोड़ता हूँ
आह्वान करता हूँ
श्राद्ध पक्ष में अपने पुरखों का
और उनका भी जो मेरे पिता थे
जिनकी जगह खाली रही जीवन में
जिनकी अंगुली
पकड़ कर नहीं चला मैं
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( मेरे चतुर्थ काव्य -संग्रह "बची हुई हंसी " से )
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उनको नहीं देखा मैंने
उनकी कोई स्मृति भी नहीं
बहुत पहले ही चले गए थे
मेरे जन्म के कुछ ही बाद
मेरे बचपन से भी पहले
फिर भी एक अहसास
न होने का,एक अमूर्त
आकृति मंडराती रही मेरे आस पास
दोनों हाथों की अंजुरी बना कर
पृथ्वी पर जल छोड़ता हूँ
आह्वान करता हूँ
श्राद्ध पक्ष में अपने पुरखों का
और उनका भी जो मेरे पिता थे
जिनकी जगह खाली रही जीवन में
जिनकी अंगुली
पकड़ कर नहीं चला मैं
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( मेरे चतुर्थ काव्य -संग्रह "बची हुई हंसी " से )
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