कविता : बातें
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कभी हमारे पास
इतनी बातें थीं कि -
ख़त्म ही नहीं होती
प्रहरों बातें करते हुए
चौराहे पर खड़े रहते
अपने अपने घर पहुँचने के
बाद याद आता कि -
वो बात तो कही ही नहीं
जो बात करने घर से निकले थे
अब मिलते हैं तो करने के लिए
कोई बात नहीं होती
करने के लिए वो बात करते हैं
जो बात ही नहीं होती
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कभी हमारे पास
इतनी बातें थीं कि -
ख़त्म ही नहीं होती
प्रहरों बातें करते हुए
चौराहे पर खड़े रहते
अपने अपने घर पहुँचने के
बाद याद आता कि -
वो बात तो कही ही नहीं
जो बात करने घर से निकले थे
अब मिलते हैं तो करने के लिए
कोई बात नहीं होती
करने के लिए वो बात करते हैं
जो बात ही नहीं होती
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