कविता
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अपने शहर में
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सदी के मध्य में
पृथ्वी पर आया
पचास वर्ष लग गए
परिवेश को समझने में
भूगोल अभी समझ
नहीं आया
नदियां समुद्र पहाड़
रेगिस्तान भी देखा
खो गया घने जंगलों में
चकित हुआ सूर्य और
चन्द्रमा देख कर
वर्षों निहारता रहा आकाश
पहचान नहीं पाया
अपने ही शहर के रास्ते
रोज़ पूछता हूँ घर का रास्ता
पूछ कर भटक जाता हूँ
अपने ही शहर में
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अपने शहर में
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सदी के मध्य में
पृथ्वी पर आया
पचास वर्ष लग गए
परिवेश को समझने में
भूगोल अभी समझ
नहीं आया
नदियां समुद्र पहाड़
रेगिस्तान भी देखा
खो गया घने जंगलों में
चकित हुआ सूर्य और
चन्द्रमा देख कर
वर्षों निहारता रहा आकाश
पहचान नहीं पाया
अपने ही शहर के रास्ते
रोज़ पूछता हूँ घर का रास्ता
पूछ कर भटक जाता हूँ
अपने ही शहर में
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