कविता
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हम खयाल
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मैं जो सोच रहा होता
वही वह कह रहा होता
कभी कभी तो एक ही बात
एक साथ कह पड़ते हम
एक से थे हमारे खयालात
तब हमारी कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी
जहां मुझे जाना होता
वहीं वह जा रहा होता
अलग अलग राह होने पर भी
एक ही स्थान पर
एक साथ पहुँच जाते हम
तब हमारी कोई पहचान नहीं थी
जब पहचान का संकट हुआ
एक राह होने पर भी
एक ही स्थान पर
अलग अलग पहुँते हुये
एक ही विषय पर
विरोधी स्वर में बोलते हैं हम
अहंकार ने इतनी
दूरियां बढ़ा दी
जो कभी हमराज थे
एक दूसरे का
राज खोलते हैं हम
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( " उद् भावना " मार्च - जून' 2016 में प्रकाशित )
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हम खयाल
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मैं जो सोच रहा होता
वही वह कह रहा होता
कभी कभी तो एक ही बात
एक साथ कह पड़ते हम
एक से थे हमारे खयालात
तब हमारी कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी
जहां मुझे जाना होता
वहीं वह जा रहा होता
अलग अलग राह होने पर भी
एक ही स्थान पर
एक साथ पहुँच जाते हम
तब हमारी कोई पहचान नहीं थी
जब पहचान का संकट हुआ
एक राह होने पर भी
एक ही स्थान पर
अलग अलग पहुँते हुये
एक ही विषय पर
विरोधी स्वर में बोलते हैं हम
अहंकार ने इतनी
दूरियां बढ़ा दी
जो कभी हमराज थे
एक दूसरे का
राज खोलते हैं हम
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( " उद् भावना " मार्च - जून' 2016 में प्रकाशित )
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