कविता
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बिखरा हुआ जीवन
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एक दिन मुझे
ख्याल आया
अब सिमेट लेना चाहिए
इधर -उधर देखा
कुछ भी नहीं था
सिमेट लेने के लिए
कुछ पत्र - पत्रिकाओं
और पुस्तकों के अतिरिक्त
जो बिखरी हुई थीं मेरे बाहर
मैं तो सिमटा हुआ ही रहा
कभी फैलाया नहीं स्वयं को
अपने से बाहर
सिमटते -सिमटते
इतना सिकुड़ गया कि -
सिलवटें पड़ गईं
जीवन में कभी
दौड़ नहीं लगाई
धीमें धीमें ही चलता रहा
सिमटा - सिकुड़ा
कछुए से सा जीवन जिया मैंने
फिर न जाने क्यों
मुझे ख्याल आया
अब सिमेट लेना चाहिए
एक बार और
इधर- उधर देखा
देखा अपने अंदर
सिमटते - सिमटते भी
कितना बिखर गया था
इतना बिखरा था जीवन
सिमेटा नहीं जा सकता था.
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( राजस्थान पत्रिका, जयपुर। रविवार' २७दिस्म्बर' २०१५ में पकाशित )
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बिखरा हुआ जीवन
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एक दिन मुझे
ख्याल आया
अब सिमेट लेना चाहिए
इधर -उधर देखा
कुछ भी नहीं था
सिमेट लेने के लिए
कुछ पत्र - पत्रिकाओं
और पुस्तकों के अतिरिक्त
जो बिखरी हुई थीं मेरे बाहर
मैं तो सिमटा हुआ ही रहा
कभी फैलाया नहीं स्वयं को
अपने से बाहर
सिमटते -सिमटते
इतना सिकुड़ गया कि -
सिलवटें पड़ गईं
जीवन में कभी
दौड़ नहीं लगाई
धीमें धीमें ही चलता रहा
सिमटा - सिकुड़ा
कछुए से सा जीवन जिया मैंने
फिर न जाने क्यों
मुझे ख्याल आया
अब सिमेट लेना चाहिए
एक बार और
इधर- उधर देखा
देखा अपने अंदर
सिमटते - सिमटते भी
कितना बिखर गया था
इतना बिखरा था जीवन
सिमेटा नहीं जा सकता था.
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( राजस्थान पत्रिका, जयपुर। रविवार' २७दिस्म्बर' २०१५ में पकाशित )
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