तीन कवितायेँ
-------------- [ एक ]
पुराना साज़
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जब कभी उदास होता
लेकर बैठ जाता पुराना साज़
जिसे छेडने पर निकलती मधुर धुनें
दर्द भरे गीतों में ही नहीं
उल्लास और प्रेम गीतों में भी
कितनी ख़ामोशी थी
दुःख हों या खुशियां
छलक पड़ते थे आंसू
अंदर का कोलाहल
साज़ ही महसूस करता था
हैं सबसे मधुर वो गीत
जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं
एक दिन टूट गया वो साज़
जैसे टूट जाता है कोई सम्बन्ध
एक पचास वर्ष पुराने साज़ के
टूट जाने का अंदेशा तो रहता है
एक पचास वर्ष पुराने सम्बन्ध का
अनायास तो नहीं होता टूट जाना
अंदेशा न रहता हो तो भी
मेरे टूटे हुए दिल से
कोई तो आज ये पूछे
अब भी कभी कभी
टूटे हुए साज़ को ले कर बैठ जाता हूँ
छेड़ने पर जिसमें से निकलती है
टूटी भर्राई सी आवाज
मुझको इस रात की तन्हाई में
आवाज न दो
नए साज़ में कितनी ही पुरानी धुनें
निकाल ने की कोशिश करो
वो सुर नहीं मिलता
जैसे नए सम्बन्धों में
कितनी ही गर्माहट हो
वो ऊष्मा नहीं मिलती
सुर न सधे क्या गाउँ मैं
सुर के बिना जीवन सूना
ज़माना बदलता है तो
साज़ भी बदल जाते हैं
सरोकार बदल जाते हैं तो
सम्बन्ध भी बदल जाते हैं
यूँ ही दुनिया बदलती है
इसी का नाम दुनिया है
--------- [ दो ]
बातें
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कभी हमारे पास
इतनी बातें थी कि -
ख़त्म ही नहीं होती थीं
प्रहरों बातें करते हुए
चौराहे पर खड़े रहते
अपने - अपने घर
पहुँचने के बाद
याद आता कि -
वो बात तो कही ही नहीं
जो बात करने घर से निकले थे
अब मिलते हैं तो
करने के लिए
कोई बात नहीं होती
करने के लिए
वो बात करते हैं
जो बात ही नहीं होती
------- [ तीन ]
उम्मीद
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पहले मुझे कभी
उसकी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी
क्योंकि वह वहां
पहले से ही मौजूद रहता था
जहाँ मुझे
उसकी अपेक्षा होती
मुझे अब भी
उसकी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती
क्योंकि वह
वहां नहीं आएगा
जहाँ मुझे
उसकी अपेक्षा तो है
पर उम्मीद नहीं
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[" वागर्थ " अंक २४५ दिसम्बर' २०१५ में प्रकाशित ]
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