कविता
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हवा को कैद करने की साजिश
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वे हवा को कैद कर कहते है
मौसम का बयान करो
उस चरित्रहीन मौसम का
जिसको तमीज़ नहीं है
हरे और पीले पत्तों में अंतर की
उसकी बदतमीजी का गवाह है
ये सूखी टहनियों वाला पेड़
जवानी में ही बूढ़ा हो गया पेड़
जिसके पत्ते अभी
ठंडी हवा में झूम भी नहीं पाए थे
हवा को कैद करने की साजिश शुरू हो गई
इस पेड़ की जड़ों में
उन लोगों का खून है
जो शब्दों को हवा में विचरने की
आज़ादी चाहते थे
उन लोगों का ख्वाब था कि
इस पेड़ से निकल ने वाली
लोकतंत्र / स्वतंत्रता / समानता
कि टहनियां पूरे जंगल में फ़ैल जाएँगी
जिसके पत्तों की हवा से
शब्दों को नई जिन्दगी मिलेगी
लेकिन उनके उतराधिकारी
जंगल का दोहन कर
अपने शीशे के घरों की
सुरक्षा में व्यस्त है
हवा को कैद कर खुश है
वो नहीं जानते की
हवा कभी कैद नहीं हो सकती
ये हवा प्रचंड आंधी बन कर
उनके शीशे के घरों को चूर कर देगी
शीशे के करोड़ों टुकड़े खून के
कतरों में बदल जायेगें
खून का हर कतरा एक शब्द होगा
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
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