रविवार, 20 सितंबर 2020
कविता : समय और दूरी
शनिवार, 19 सितंबर 2020
कविता : समय और दूरी
गुरुवार, 4 अप्रैल 2019
समझदार
अपनी अपनी होती है समझ
कुछ ज्यादा समझदार होते है, कुछ कम
कम समझदार अपने को
ज्यादा समझदार समझते हैं
ज्यादा समझदार होते हैं
वे तो समझदार होते ही हैं
समझदार अक्सर
किसी को नहीं समझते
वे अपनी ही समझ को
समझते हैं सही
अगर अपनी समझ से कहने वाला
उम्र, पद या हैसियत में
रहा हो कम तो
समझदार कह सकता है
अभी समझते नहीं हो
दो समझदार एक - दूसरे को
समझते हैं ना समझ
जो वास्तव में ना समझ हैं
वह अपनी समझ से
जो कर लेता है
उसमें रहता है खुश
समझदार कभी
अपनी समझ से
नहीं होता संतुष्ट
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( प्रकाशित " जनतेवर " जयपुर, 15 जून ' 2018
पुराने मित्र
पुराने मित्र
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समय न मिलने की
शिकायत के बावजूद
कई घंटे बिता देते हैं
कम्प्यूटर - मोबाइल पर
सामाजिक न होते हुए भी
सामाजिक बने रहते हैं
फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्स एप
इंस्टाग्राम, टम्बलर पर
पुराने मित्रों के जिनके
घर जाते थे प्रतिदिन
नए घर ढूंढ़ते हैं गूगल मैप पर
अपरिचित से पहुंचते हैं
बच्चे पहचानते नहीं
मित्रों में बची है ओपचारिकता
शिकायत करते हैं न मिलने की
कुछ देर याद करते हैं पुराने दिन
लगाते हैं नकली ठहाके
चाय पीते हुए
एक दूसरे का नया मोबाइल
व्हाट्सएप नंबर लेते हैं
समय कम मिलने के
बहाने के साथ लौट आते हैं
झूठा वादा करते हुए
जल्दी ही मिलते हैं फिर
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( प्रकाशित " जनतेवर " जयपुर, 15 जून' 2018 )
शुक्रवार, 22 मार्च 2019
रविवार, 25 नवंबर 2018
गोविन्द माथुर की कविताएं।
सोमवार, 19 नवंबर 2018
रविवार, 27 मई 2018
छोड़ना ( 3 )
कहाँ कहाँ नहीं
छोड़ा गया मैं
धनवान लोगों की
सूची में छोड़ा गया
बुद्धिजीवियों की
सूची में छोड़ा गया
पुरुस्कृत लोगों की
सूची में छोड़ा गया
जब बनी कवियों की सूची
उसमें भी छोड़ा गया
न मुझे ईमानदार माना गया
न ही चरित्रवान
एक निम्न मध्यवर्गीय में
नैतिकता हो इसे भी
स्वीकार नही किया गया
मुझे न सर्वहारा माना गया
न ही पिछड़ा
आरक्षित वर्ग की
सूची में छोड़ा गया
मैं भूख से लड़ा
बेरोज़गारी से लड़ा
अन्याय के विरुद्ध
धरने दिए सड़कों पर
जुलूस में नारे लगाए
पुलिस की लाठियां खाई
जब क्रांतिकारियों की
सूची बनी
उसमें भी छोड़ा गया
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( " अभिनव संबोधन " अंक 2 - 3 / जनवरी - मार्च ' 2018 में प्रकाशित )
छोड़ना ( 2 )
छोड़ना ( 2 )
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इतना मुश्किल भी
नहीं होता छोड़ना
हम छोड़ देते हैं पहनना
दस वर्ष पुराना कोट
दो वर्ष पुराने जूते
पांच वर्ष पुरानी कमीज़
जो अभी कहीं से भी
फटी नहीं है
रद्दी खरीदने वाले को
बेच देते हैं
तीस वर्ष से सहेज कर
रखी साहित्यिक पत्रिकाएं
कबाड़ी को दे देते हैं
बीस साल पुराना स्कूटर
जो अब भी काम दे जाता था
तीस - चालीस किक मारने के बाद
मुश्किल भी होता है
छोड़ते हुए भी छोड़ना
सहेज कर रख लेते हैं
चालीस वर्ष पुरानी
कलाई घड़ी जो चलती थी
हाथ से चाबी भरने पर
जिसके पुर्जे अब
कहीं नहीं मिलते शहर में
बहुत मुश्किल होता है
फिर भी छोड़ देते हैं
उन घरों में जाना
जिन घरों को बचपन से
समझते रहे अपना घर
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( " अभिनव संबोधन " जनवरी' - मार्च' 2018)
गुरुवार, 19 अप्रैल 2018
छोड़ना ( 1 )
छोड़ना
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( एक)
आसान नहीं होता
कुछ भी छोड़ना
फिर भी छूट जाता है
बहुत कुछ समय के साथ
जैसे कि छूट जाता है
अपना घर
गलियां, चौराहे और
नीम का पेड़
छूट जाता है अपना शहर
अपना आकाश
छूट जाते हैं बचपन के दोस्त
छूटती नहीं हैं
किन्तु स्मृतियाँ
घर बदलने पर भी
शहर बदलने पर भी
उम्र बढ़ने के साथ
छूट जाते हैं स्वप्न
छूट जाता है बचपन
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( " अभिनव संबोधन " जनवरी' - मार्च " 2018
शनिवार, 6 जनवरी 2018
गुरुवार, 22 जून 2017
साक्षात्कार : गोविन्द माथुर
शनिवार, 6 मई 2017
छाया
आकाश
नीला
बुधवार, 19 अप्रैल 2017
खिलौना खरीदने से पहले
मंगलवार, 21 मार्च 2017
कवि और समाज
बुधवार, 8 मार्च 2017
जली हुई देह
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जली हुई देह
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वह स्त्री पवित्र अग्नि की लौ से
गुज़र कर आई उस घर में
उसकी देह से फूटती रोशनी
समा गई घर की दीवारों में
दरवाजों और खिड़कियों में
उसने घर की हर वस्तु कपडे, बिस्तर,बर्तन
यहाँ तक की झाड़ू को भी दी अपनी उज्ज्वलता
दाल,अचार, रोटियों को दी अपनी महक
उसकी नींद,प्यास,भूख और थकन
विलुप्त हो गई एक पुरुष की देह में
पवित्र अग्नि की लौ से गुज़र कर आईं
स्त्री को एक दिन लौट दिया अग्नि को
जिस स्त्री ने पहचान दी घर को
उस स्त्री की कोई पहचान नहीं थी
जली हुई देह थी एक स्त्री की
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शनिवार, 18 फ़रवरी 2017
तस्वीरों से झांकते पुराने मित्र
मौजूद है पुराने मित्र
पंद्रह बीस साल गुज़र गए
अंडे खरीद ते हुए
मिलते थे हर रोज़
गुरुवार, 5 जनवरी 2017
काम से लौटती स्रियाँ
बुधवार, 14 दिसंबर 2016
कम - कम
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कम - कम
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कम कम में भी
कट जाता है जीवन
खुशियां मिली कम
प्रेम मिला कम
लोगों के दिल में
जगह मिली कम
चाय में मिली चीनी कम
दाल में मिला नमक कम
शराब में मिला पानी काम
दोस्तों ने निभाई दोस्ती कम
दुश्मनों ने निभाई दुश्मनी कम
कुछ और अच्छा कट जाता जीवन
दुःख भी मिले होते कम
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सोमवार, 28 नवंबर 2016
रास्ते
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रास्ते
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उन्ही रास्तों पर चला मैं
जो थे लंबे और ऊबड़ - खाबड़
शार्ट - कट नहीं ढूंढें मैंने
अभी मंज़िल दूर थी
कुछ लोग लौटते हुए मिले
सही राह की तलाश में
बहुत कम थे
अधिकांश शार्ट - कट से
पहुँच गए थे गन्तव्य तक
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शनिवार, 22 अक्तूबर 2016
यहां एक नगर था
बुधवार, 12 अक्तूबर 2016
नींद में स्त्री
नींद में स्री
कई हज़ार वर्षों से
नींद में जाग रही है स्री
नींद में भर रही है पानी
नींद में बना रही है व्यंजन
नींद में बच्चों को
खिला रही है दाल चावल
पूरे परिवार के कपडे धोते हुए
झूठे बर्तन साफ़ करते हुए
थकती नहीं स्त्री
हजारों मील नींद में चलते हुए
जब पूरा परिवार
सो जाता है संतुष्ट हो कर
तब अँधेरे में
अकेली बिलकुल अकेली
नींद में जागती रहती है स्त्री
कई हजार वर्षों से
नींद में कर रही है प्रेम
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