मंगलवार, 25 फ़रवरी 2025

कविता

 कम बोलने वाले लोग

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कुछ लोग कम बोलते हैं

इतना कम कि -

स्वयं की आवाज भी सुने हुए
सदियाँ गुजर जाती हैं

कुछ लोग धीमे बोलते हैं
इतना धीमें कि -
स्वयं की आवाज भी
दूर से आती सुनाई देती है

धीमें और कम
बोलने वाले लोग
तन्हा रहते हैं घर में
जा कोई कुछ कहता है उनसे
वे चुप रह कर ही जवाब देते हैं

जब कभी गुजरना  पड़ता है
व्यस्त सड़कों पर बाजार से
कोलाहल  में कई चीखों के बीच
वे पहचान नहीं पाते
स्वयं की चीख भी

धीमे और कम बोलने वाले लोग
अक्सर  बुदबुदाते पाए जाते हैं
एकांत में  मन ही मन
स्वयं से करते रहते हैं संवाद
ताकि भूल न जाएंं
शब्दों का  उच्चारण भी


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( प्रकाशित  " संप्रेषण" १७३ - १७४ जन - जून ' २०१९) 

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