शनिवार, 29 अगस्त 2009
कविता --- माँ के आने पर बच्चा
माँ के आने पर बच्चा
------------------------------------
रिक्शे की आवाज़ पहचान
अपने नन्हे नन्हे पैरों से
दरवाजे की और बढ़ता है बच्चा
दरवाजे पर ही गोद में
उठा लेती है माँ
दोनों के शरीर में
एक अव्यक्त तरंग उठती है
बच्चा छूता है
माँ के गाल
होंठ, नाक और बाल
फिर नन्हे नन्हे हाथों से
पीटता है माँ को
भरता है किलकारी
चिपट जाता है छाती से
दिन भर कैसे रहता है
डेढ़ साल का बच्चा
माँ से अलग
--------------------------
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत कुछ कह गयी आपकी कविता
जवाब देंहटाएंMaarmik rachna.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
बहुत मासूम और ज़ायद सवाल
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण
ज़ायद की जगह ज़ायज पढे
जवाब देंहटाएंबच्चों पर कविताओं की पूरी पी एच डी सी कर दी है आपने..इतना कुछ लिखा है आपने बच्चॊं पर..बचपन पर..उन सवालों पर जिनका कोई जवाब न होना ही शायद सबसे सही जवाब होना है..बहुत खूब
जवाब देंहटाएं