कविता
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तस्वीरों से झांकते पुराने मित्र
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श्वेत श्याम तस्वीरों में अभी
मौजूद है पुराने मित्र
मौजूद है पुराने मित्र
गले में बाहें डाले या कंधे पर कुहनी टिकाये
तस्वीर देख कर नहीं लगता बरसों से नहीं मिले होंगें
ये मासूम से दिखने वाले पतले - दुबले छोकरे
तस्वीरों बाहर मिलना नहीं होता पुराने मित्रों से
कुछ एक को तो देखे हुए भी
पंद्रह बीस साल गुज़र गए
पंद्रह बीस साल गुज़र गए
एक ही शहर में रहते हुए भी
अचकचा गया एक दिन अजमेरी गेट पर
अंडे खरीद ते हुए
अंडे खरीद ते हुए
एक मोटे आदमी को देख कर
प्रमोद हंस रहा था मुझे पहचान कर
महानगर होते नगर में ऐसा कभी ही होता है कि
कोई आप को पहचान रहा हो
ये सोच कर उदास हो जाता है मन
जिन मित्रों के साथ जमती थी महफ़िल
मिलते थे हर रोज़
मिलते थे हर रोज़
घंटों खड़े रहा करते थे चौराहे पर वे बचपन के मित्र
जीवन से निकल कर तस्वीरों में रह गए हैं
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