tag:blogger.com,1999:blog-6805795057295775039.post4694752009057410983..comments2023-08-04T05:50:13.661-07:00Comments on क्षितिज: साइकिल में बमGovind mathurhttp://www.blogger.com/profile/10098366639716300732noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6805795057295775039.post-85164161416202936282011-12-15T20:19:03.305-08:002011-12-15T20:19:03.305-08:00चौबीस घंटे से एक ही मुद्रा में खड़ी
साईकिल नार...चौबीस घंटे से एक ही मुद्रा में खड़ी <br />साईकिल नाराज़ लगी <br />जैसे कह रही हो <br />तुम्हारी, ये भूल जाने की आदत ठीक नहीं<br /><br />बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. कुछ कुछ केदारनाथ अग्रवाल की बात है इस कविता में. अजीवित वस्तुओं को जीवित करना आसान नहीं है.Varunhttp://www.bhaiyyu.comnoreply@blogger.com